Tuesday, 1 October 2024

गुरुपूज्य, प्रातः स्मरणनीप, वंदनीय, श्री श्री "दाजी" चरणावत, प्रणाम, चरणोदक के साथ।

 
















गुरुपूज्य, प्रातः स्मरणनीप, वंदनीय, श्री श्री "दाजी"

चरणावत, प्रणाम, चरणोदक के साथ।

 

1.     एक पुकार बच्चे की जो कि मात्र ८० वर्ष (D. O. B. 03.07.1945 )   S. R. C. M.,  I. D. NO. INVC11109, जो कि पंथनगर इंजीनियरिंग प्रथम साल का विद्यार्थी था, डॉ. शरण बिहारी गुप्ता, PROF.  SBSH. UNIVERSITY के PROFESSOR के द्वारा कई भंडारा मथुरा - दुडला आदि ATTEND  किया / PT. मिहीलाल जी, डॉ. चतुर्भुज सहाय जी आदि के सानिध्य में सत्संग होता रहा !

 

NOTE  : दोनों फोटो पुराना है - क्षमा चाहता हूँ

 

2.     इसके बाद मै इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. टेक.,  एम. टेक., रीवा, इन्दौर से जबलपुर आगमन हुआ 1980 मे तब से ध्यान, सफाई सतत स्मरण कम से कम 24 घंटे मे 5-6 बार तो हो जाता है और हमेशा शांति से मौनधारण कर मालिक की गोद मे चुपचाप बैठा रहता हूं और अपना डियूटी करता रहता हूं। मालिक ।

 

3.     मै 1986 में आई. आई. टी., खड़गपुर (W. B.) इंजीनियरिंग पीएचडी करने गया। उसी में मेरी वेटी ब्रजबाला लडकी की शादी की। ससुराल पक्ष से दहेज प्रताणना आउट साइकेट्रिक पेशेन्ट हो गयी। जबलपुर, भोपाल दवा कराए कोई फायदा नही । में पूज्यचारी जी की रोने वाली खूब मिला जो मेल्टली और दिल्ली से दवा ।

 

4.     अत्याधिक परेशान होने के बाद पूज्यचारी जी का दर्शाने कराए। जबलपुर मे तथा चेन्नई हम सपरिवार कम से कम 100 बार चेन्नई गया हूँ, ब्रजबाला वहां एक एक माह अकेले रही है। भोजन आदि का इन्तजाम देखती थी ।

 

5.     मालिक श्री चारी जी एक बार जबलपुर आए, मेरी लम्बी मोटी चोटड्या (चोटी) त्रिकाल संध्या, वन्दन, हवन, करने वाला, साल के तीनो नवरात्री, मे अस्वाद व्रत (बगैर नमक शक्कर के ) 27 साल किया। मालिक ने चोटड्या कटवा दी । "ब्रजबाला" को इतना फायदा हुआ कि डां० विदुषी, छोटी बहन का घर, 12 साल तक सम्भाली, अभी भी दवा चल रहा है। परन्तु दवा कम हो गयी है अब वह ठीक है ।

 

6.     उसी में, मेरी पीएचडी की थीसिस ट्रेन ने चोरी हो गयी । उसी मे, ब्रजवाला भी परेशानी आदि मे टूट गया। फिर जबलपुर में बी. टेक., व एम. टेक. पीएचडी शुरू कराये हम भी पीएचडी आईआइटी, जेएनकेविवि से 30 जुलाई 2007 को पूरा किया 31 जुलाई 2007 को रिटायर हो गया ।

 

7.     मेरा इस प्रकार 03 बार एम. टेक. और 02 बार पीएचडी करने का श्रेय मिला रिटायर के बाद 15 साल तक आर०जी० टेक्नीकल यूनिवर्सिटी, भोपाल के कॉलेजों मे तया मम्बई यूनिवर्सिटी, मेकेनिकल इंजीनियरिंग मे पढाया, बी. टेक., एम. टेक. तया पीएचडी ।

8.     मै अभी 75-76 साल मे अस्वस्थ्यता के कारण घर आ गया । कोविड हुआ तो मुम्बई से जबलपुर आया, फिर कोलेस्टोल बढ गया कही भी गिर जाता या। एक बार आश्रम के मेडीटेशन हॉल में पूजा करते गिरा, दो डाक्टर थे डां० बडेरिया, डॉ० खरे, ठीक हुआ घर आया। मैं जब भी गिरता था अस्पताल मे भर्ती होता या अबकी बार ठीक हो गया, तो हमने 50,000/- रुप्या आश्रम को दिया, कारण जब मै जमीन पर गिरता था हॉस्पिटल में भर्ती होता था कम से कम 1.5 लाख खर्चा होता था । अबकी बार आश्रम मे ही डाक्टर लोग ठीक कर दिए, इसलिये 50 हजार हमने आश्रम को दिया ।

 

9.     उसके बाद एन०जी०ओ० ग्राफी दुबारा हई । एक बार मुम्बई में हुआ था । At the Last एन्जीयोप्लास्टि हुआ, अब ठीक हुआ ।

 

10.                       3rd बार एक सटरडे को शाम को व्यक्तिगत सीटिंग के लिये ब्रदर सुनील खांडेकर + वन्दना खांडेकर (सिस्टर) उसके बाद बगल मे अश्वनी गुप्ता ब्रदर के यहां गये कोई नही दिया, सभी व्यस्त या बाहर थे, फिर मैं जिददी स्वभाव का श्री के. के. श्रीवास्तव ब्रदर के यहां गया पूजा लिया। लौटते समय सीढ़ियों पर से गिर पड़ा। बांया पैर कमर से टूट गया, महीनो हास्पिटल में था । अब ठीक है वॉकर लेकर 08 माह बाद घर मे चलता हूं ।

 

11.                       एक दिन रात को, मैं परेशानी से त्रस्त हो गया था, सोचता था और रोता था, क्या

 

        I.            बेटी ब्रजबाला बीमार हो गया, पूजा बंद हो गयी, 54 साल की मानसिक (दहेज प्रताडना मे), चारी जी ने कहा घर को आश्रम बनाओ । आपकी कृपा से वह ठीक हो गयी, आप जबलपुर मे आए थे, उसका पूजा भी शुरू हो गया । छोटी बहन के यहां गाजियाबाद मे डां० विदुषी एसएससी एमसीए, सीधे पीएचडी करके, वह आईटी एस कालेज, मोहन नगर मे चेयर पर्सन थी को सम्भाला, अब हमको देख रही है दवा आदि ।

 

     II.            छोटा वेटा विवेकानंद, बहू अंकिता, पोता चीकू, जब मै मुम्बई सभी नौकरी छोडकर बाद मे आ गए, आश्रम मे जो भोजनालय है उसका इन्चार्ज, वेटा आश्रम का मेन्टेनेंस देख रहा है ।

 

   III.            मेरी पीएचडी 21 साल बाद आप ही की कृपा से रिटायर के एक दिन पहले से मिला। अभी प्रोमोशन बाकी है, बेटा कांट्रेक्टर गर्वनमेन्ट का हो गया । वह बी. टेक. एमबीए है बहू एमबीए, सी. ए., परसुईग है।

 

  IV.            मेरे पास घर नही था, जोनल आश्रम जबलपुर में एक घर बी 60 खरीदा 50-60 लाख का, घर से छोटे भाई श्याम सुन्दर मेरी प्रापर्टी का ने 80 लाख दिया था। यह भी आप ही आप ही की कृपा से हुआ, आपने भगवन मेरा सब कुछ किया परतु हमेशा बीमारी क्यो होती है कोविड, हार्ट प्रोब्लम, पैर टूटना, आदि ।

 

 

रात में हम रोते- रोते, विह्वल -परेशान हो गए । आपका सपना आया, मेरी आपसे बात हुई, आपने हमको बडी देर तक समझाया, वी सी सिह तुम्हारा सस्कार अपना बड़ा था कि दोनों पैर जाता, परतु तुम एक पूजा ले लिये, अब डेढ पेर तो है आधा तो ख़राब हुआ।

 

तुम शानिवार को व्यक्तिगत सीटिंग के लिये 3-4 प्रशिक्षक के यहा दोडे कि हमारी SUNDAY की पूजा ठीक हो जाये अब तुम्हे प्रशिक्षक बनाता हूं, तुम घर में पूजा करो । घर में कोई आये तो उसको भी पूजा देना। तुम्हें प्रशिक्षक के पास या आश्रम के मैडिटेशन हाल में भी नहीं जाना है ।

 

आपका उत्तर पकर नै रोना बंद किया, यह 3-4 माह हुआ । अब जब पूजा को इच्छा होती है आप से तुरंत मिल जाता है जो आता है उसको पूजा आप की ही मिलती है । आपका आशीर्वाद रूपी उत्तर चाहिए । घर का प्रभु पूजा की परमिशन मिल जायेगा ।

 

THANKS, आपका आशीर्वाद शेष है ।

आपका बालक

 

 

[विंध्याचल सिंह]

डॉ. वी. सी. सिंह

वी-60, एस आर सी एम्, जोनल आश्रम,

नियर ओरिएण्टल इंजीनियरिंग कालेज अंधुआ जबलपुर

482003 मध्य  प्रदेश   मो. नं.94258 00455

 

गलती क्षमा के लिए प्रार्थी : -

       i.            पत्र बहुत लम्बा हो गया है और

     ii.            पत्र में गलतियों के लिए क्षमा

   iii.            फोटो पुराना है ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पूज्य बाबू जी ने लिखा है कि अगर मेरे जैसा बनना है तो रात्री मे 1 A. M. से 3 A. M. के बीच साधना मेडीटेशन करो हम तुमको अपनी जगह देगे

 

मै गुरूजी कुछ साल तक यह भी किया, मेरे मे काफी अन्तर आया अन्तर मौन की स्थिति का स्वागत किया। "आप चुप और हम चुप का पाठ पढाया"

 

मालिक मुझे आपका …………… “कान्हा शांती वनम" मे दर्शन चाहिए। और कुछ भी नही चाहिए " प्रभु मेरे नाथ दाजी चरणवत वंन्दना स्वीकार करे

 

नोट - हे मेरे नाथ I am writing a needful letter to our beloved master in "first time"

2. अगाध प्रेम मे डूबते हुये हृदय का उदगार परोसता रहा पत्र बडा हो गया

3. गुरु देव

 

मेरा मन सोच रहा था कि जब तक यह पत्र आपको वायपोस्ट मिलेगा क्या हम वाकर से धीरे- धीरे पैदल चल कर आप के पास पहुंच कर हृदय की वेदना सुनाने के साथ- साथ काम

 

1. चरण धूली मिल जायेगी

 

2. हमारे पास गंगा जल है तो चरणोदक मिल जायेगी

 

3. परतु हृदय बोलता है कि बच्चे 40X60 घर के अंदर चलाते है वहां इतनी दूर नहीं जाने देगे

 

क्या करूं मास्टर स्वप्न मे मुलकात करके सारी प्राब्लम सोल्व कर लेगे आपकी महती कृपा हुई तो

 

 

प्रणाम मास्टर

Friday, 27 September 2024

Jaipur Vidyut Vitran Nigam Ltd. vs MB Power (Madhya Pradesh) Limited 2024 INSC 23 –

 

 

 

Jaipur Vidyut Vitran Nigam Ltd. vs MB Power (Madhya Pradesh) Limited 2024 INSC 23 – Electricity Act – Article 226 – Writ Jurisdiction In Contractual Matters – Interpretation Of Statutes

 

Constitution of India, 1950; Article 226 – When a right is created by a statute, which itself prescribes the remedy or procedure for enforcing the right or liability, resort must be had to that particular statutory remedy before invoking the discretionary remedy under Article 226 of the Constitution of India – Availability of an alternate remedy is not a complete bar in the exercise of the power of judicial review by the High Courts. But, recourse to such a remedy would be permissible only if extraordinary and exceptional circumstances are made out. (Para 95-99)

 

Constitution of India, 1950; Article 226 – Writ Petitions in contractual matters – The award of a contract, whether it is by a private party or by a public body or the State, is essentially a commercial transaction. In arriving at a commercial decision, considerations which are paramount are commercial considerations – The State can choose its own method to arrive at a decision. It can fix its own terms of invitation to tender and that is not open to judicial scrutiny – The State can enter into negotiations before finally deciding to accept one of the offers made to it – Price need not always be the sole criterion for awarding a contract – State may not accept the offer even though it happens to be the highest or the lowest. However, the State, its corporations, instrumentalities and agencies are bound to adhere to the norms, standards and procedures laid down by them and cannot depart from them arbitrarily. Though that decision is not amenable to judicial review, the court can examine the decision making process and interfere if it is found vitiated by mala fides, unreasonableness and arbitrariness – Even when some defect has been found in the decision making process, the court must exercise its discretionary power under Article 226 with great caution and should exercise it only in furtherance of public interest and not merely on the making out of a legal point. The court should always keep the larger public interest in mind in order to decide whether its intervention is called for or not. Only when it comes to a conclusion that overwhelming public interest requires interference, the court should intervene – Unless the Court finds that the decision-making process is vitiated by arbitrariness, mala fides, irrationality, it will not be permissible for the Court to interfere with the same – Referred to Air India Ltd. v. Cochin International Airport Ltd. (2000) 2 SCC 617=2000 INSC 39 and Tata Cellular v. Union of India (1994) 6 SCC 651 (para 94)= 1994 INSC 283. (Para 102-103)

 

 

Constitution of India, 1950; Article 226 – A petition need not be dismissed solely on the ground of delay and laches. However, if petitioner approaches the Court with delay, he has to satisfy the Court about the justification for delay in approaching the Court belatedly. (Para 100)

 

Electricity Act, 2003 ; Section 86(1)(b) – State Commission has ample power to regulate electricity purchase and procurement process of distribution licensees. It also empowers the State Commission to regulate the matters including the price at which electricity shall be procured from the generating companies, etc. (Para 71)

 

Electricity Act, 2003 ; Section 63 – Appropriate Commission does not act as a mere post office under Section 63 – Clause 4, in particular, deals with tariff and the appropriate Commission certainly has the jurisdiction to look into whether the tariff determined through the process of bidding accords with Clause 4. (Para 67)

 

Interpretation of Statutes – The modern approach of interpretation is a pragmatic one, and not pedantic. An interpretation which advances the purpose of the Act and which ensures its smooth and harmonious working must be chosen and the other which leads to absurdity, or confusion, or friction, or contradiction and conflict between its various provisions, or undermines, or tends to defeat or destroy the basic scheme and purpose of the enactment must be eschewed. (para 90)

 

Words and Phrases – “all”- “any”-  The words “all” or “any” will have to be construed in their context taking into consideration the scheme and purpose of the enactment. What is the meaning which the legislature intended to give to a particular statutory provision has to be decided by the Court on a consideration of the context in which the word(s) appear(s) and in particular, the scheme and object of the legislation. (Para 87)

 

 

 

 

Sunday, 22 September 2024

 गोरखपुर द्वारा दि०२४-१०-७२ को सम्पन्न हुआ डा. शर्मा के जुलाई के संकेत पर श्री जँग बहादुर सिंह उप विद्यालय निरीक्षक - बस्ती की सक्रिय प्रेरणा से श्री हंसराज दुबे तथा श्री बंशराज दुबे निवासी महरी पुर ने अपने तन. मन औरधन से भवन का निर्माण कार्य पूर्ण किया मा सुरेन्द्रप्रताप सिंह अति. मुख्य अधिकारी ने जिला परिषद से २०००) श्री मिट्ठू सिंह ने १०१). श्री राम कुमार सिंह ने१०१) तथा विद्यालय के ६ अध्यापकों ने ४८०) - नकद प्रदान किया सभी लोग बधाई के पात्र हैं


Done by Gorakhpur on 24-10-72, on the indication of Dr. Sharma in July, with the active inspiration of Mr. Jang Bahadur Singh Sub School Inspector - Basti, Mr. Hansraj Dubey and Mr. Bansharaj Dubey resident of Mahripur, Ma Surendra Pratap Singh completed the construction work of the building with his heart and money. 2000) from the Zilla Parishad by the Chief Officer Shri Mitthu Singh 101). Shri Ram Kumar Singh donated 101) and 6 teachers of the school donated 480) in cash. All the people deserve congratulations.




Monday, 15 July 2024

In the case of Ram Nath Sao @ Ram Nath Sahu and Ors Vs Gobardhan Sao and Ors decided on 27 Feb 2002 reported in (2002) 3 SCC 195 = 2002 AIR SCW 978 = AIR 2002 SC 1201 the apex court held that Acceptance of explanation furnished should be the rule and refusal an exception. Relevant para is quoted below : “9. It is axiomatic that condonation of delay is a matter of discretion of the court. Section 5 of the Limitation Act does not say that such discretion can be exercised only if the delay is within a certain limit. Length of delay is no matter, acceptability of the explanation is the only criterion. Sometimes delay of the shortest range may be uncondonable due to a want of acceptable explanation whereas in certain other cases, delay of a very long range can be condoned as the explanation thereof is satisfactory”.

 

1.     In the case of Ram Nath Sao @ Ram Nath Sahu and Ors Vs Gobardhan Sao and Ors decided on 27 Feb 2002 reported in (2002) 3 SCC 195 = 2002 AIR SCW 978 = AIR 2002 SC 1201 the apex court held that Acceptance of explanation furnished should be the rule and refusal an exception. Relevant para is quoted below :

 

“9. It is axiomatic that condonation of delay is a matter of discretion of the court. Section 5 of the Limitation Act does not say that such discretion can be exercised only if the delay is within a certain limit. Length of delay is no matter, acceptability of the explanation is the only criterion. Sometimes delay of the shortest range may be uncondonable due to a want of acceptable explanation whereas in certain other cases, delay of a very long range can be condoned as the explanation thereof is satisfactory”.

Wednesday, 29 December 2021

मप्र हाई कोर्ट से रीडर को मिली अंतरिम राहत, सेवानिवृत्ति आयु के विवाद का मामला

मप्र हाई कोर्ट से रीडर को मिली अंतरिम राहत, सेवानिवृत्ति आयु के विवाद का मामला


पूर्व में हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ आयुष नर्सों के मामले में शशिबाला चौहान विरुद्ध मप्र राज्य रिट याचिका में राहतकारी आदेश प्रदान किया था।


मध्‍य प्रदेश हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्ति विवाद के मामले में हकीम सयैद ज़िआउल हसन यूनानी मेडिकल कालेज अस्पताल, भोपाल में रीडर के पद पर कार्यरत डा. ज़ुबैर अहमद अंसारी को अंतरिम राहत दे दी है। इसके तहत 65 वर्ष की आयु तक सेवारत रखे जाने की व्यवस्था दी गई है। साथ ही राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया है।


न्यायमूर्ति नंदिता दुबे व जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की शीत अवकाश कालीन युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता विजय राघव सिंह, अजय नंदा व मनोज चतुर्वेदी ने रखा। उन्होंने दलील दी कि मध्य प्रदेश शासकीय सेवक, अधिवार्षिकी- आयु संशोधन अधिनियम, 2011 के प्रविधान चुनौती के योग्य हैं।इसके उप नियमों की संवैधानिक वैधता कठघरे में रखे जाने लायक है। बहस के दौरान दलील दी गई कि सिविल अपील में सुप्रीम कोर्ट ने नार्थ दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन विरुद्ध डा. राम नरेश शर्मा के मामले में एलोपैथी व आयुष सेवानिवृत्ति को क्रमश 65 एवं 62 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्ति अनुचित व भेदभाव पूर्ण करार देते हुए आयुष चिकित्सकों को भी सामान रूप से 65वर्ष तक कार्य करते रहने देने का राहतकारी आदेश प्रदान किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि एलोपैथी व आयुष, जिसमे भारतीय पद्धति से चिकित्सा करने वाले योग, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी सिद्धा, तथा यूनानी शामिल है, सभी का मूलभूत कार्य मरीजों की सेवा करना है। पूर्व में हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ आयुष नर्सों के मामले में शशिबाला चौहान विरुद्ध मध्य प्रदेश राज्य रिट याचिका में राहतकारी आदेश प्रदान किया था।


https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/jabalpur-reader-gets-interim-relief-from-mp-high-court-case-of-dispute-over-retirement-age-7210460

Saturday, 16 October 2021

(2001) 2 SCC 221 D.P. Chadha vs Triyugi Narain Mishra & Ors on 5 December, 2000

 D.P. Chadha vs Triyugi Narain Mishra & Ors on 5 December, 2000




The Court is bound to accept the statement of the Judges recorded in their judgment, as to what transpired in court. It cannot allow the statement of the Judges to be contradicted by statements at the Bar or by affidavit and other evidence. If the Judges say in their judgment that something was done, said or admitted before them, that has to be the last word on the subject. The principle is well settled that statements of fact as to what transpired at the hearing, recorded in the judgment of the court, are conclusive of the facts so stated and no one can contradict such statements by affidavit or other evidence. If a party thinks that the happenings in court have been wrongly recorded in a judgment, it is incumbent upon the party, while the matter is still fresh in the minds of the Judges, to call the attention of the very Judges who have made the record to the fact that the statement made with regard to his conduct was a statement that had been made in error. That is the only way to have the record corrected. If no such step is taken, the matter must necessarily end there.