वो भूली दास्तान जब बीवी-बच्चों के प्रेम में डूबा नौसेना का आला अफ़सर कातिल बन बैठा और पूरा मुल्क उसे बचाने उठ खड़ा हुआ
अक्षयकुमार की फिल्म रुस्तम ने सहसा वो भूली -बिसरी दास्तान फिर ताज़ी कर दी है जिसने न सिर्फ न्यायिक जगत बल्कि सत्ता के गलियारों तक को हिला दिया था .नानावटी केस इतना दिलचस्प रहा कि कई फिल्में बनीं. किताबें लिखी गईं. 1963 में आई ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ और‘अचानक’. सलमान रूश्दी जैसे बड़े राइटर्स ने ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ में इस इंसीडेंट पर अपनी किताब में एक चैप्टर लिखा. अक्षय कुमार की फिल्म ‘रुस्तम’ भी पूरी तरह से नानावटी केस पर बेस्ड है.
यह सेना के एक होनहार अफसर का मामला था जो नानावती कांड के रूप में मशहूर हुआ था. आजाद भारत में किसी सेना के अफसर पर चलने वाला यह पहला एसा मुकदमा था जिसकी अनुगूँज आज तक सुनाई देती है .’रूस्तम,’ जिसमें अक्षय कुमार इंडियन नेवी के ऑफिसर का रोल निभा रहे हैं। ट्रेंड की ही तरह यह फिल्म भी एक सच्ची घटना पर आधारित है। यह पहला मामला था जिसमे .पारसियों ने एक हत्यारे को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया । सिंधी अन्याय के विरोध में सड़क पर आ गए । हत्या जैसा जुर्म करने के बाद भी नौसेना अपने होनहार अधिकारी के पक्ष में डंट कर खड़ी हो गई । वकीलों की दलीलें मीडिया की सुर्खियां बन गई और मीडिया की दलीलों से जूरी ने फैसले दिए । फैसले के बाद उस केस पर फिल्में बनी हों, नॉवेल लिखे गए हों..प्ले किए गए हों।। आखिर क्या था ये नानावती केस? प्यार और धोखे की ये कहानी आज भी क्यों याद की जाती है?
नानावती नेवी के होनहार अधिकारी
27 अप्रैल, 1959 का दिन था। नौसेना के कमांडर कवास मानेकशॉ नानावती मुंबई के कोलाबा के कफ परेड के अपने मकान से निकले थे। उनकी जल्दबाजी ऐसी थी, जैसे किसी जरूरी काम से निकले हों। कार में नानावती के साथ उनकी अंग्रेजी मूल की पत्नी सिल्विया, जिनकी उम्र महज 30 साल थी और बच्चे थे।नानावती नेवी के होनहार अधिकारियों में गिने जाते। वे ब्रिटेन के डॉर्टमाउथ स्थित रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र और आईएनएस मैसूर के सेकंड इन कमांड थे। खूबसूरत और गठीले डीलडौल के नानावती दूसरे विश्वयुद्घ के दरमियान कई मोर्चों पर लड़ चुके थे। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें वीरता पुरस्कारों से भी नवाजा था।
माउंटबेटन ने प्रशंसा की थी
वे नौसेना के उन अधिकारियों में से एक थे, जिनकी भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माउंटबेटन ने विशेष रूप से प्रशंसा की थी, तब जबकि अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे।महज 37 साल के नानावती न केवल अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का विशेष ध्यान रखते, बल्कि एक आम नागरिक के रूप में अपने आदर्शों को लेकर वे सचेत थे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ कि उन्हीं के हाथों मर्डर हो गया। एक ऐसा मर्डर जो मीडिया की सुर्खियां बना।सिल्विया से नानावती की भेंट 1949 में लंदन में हुई थी।पारसी कमांडर कवास मानेकशॉ नानावटी इंग्लिश पत्नी सिल्विया और बच्चों के साथ मुंबई में रहते थे।नानावटी घर से दूर रहते थे औरपत्नी सिल्विया का अफेयर पति के दोस्त प्रेम आहूजा के साथ शुरू हो गया। 21 अप्रैल 1959 को सिल्विया ने नानावटी को सब कुछ बताया और कहा कि प्रेम उनसे शादी नहीं करना चाहते हैं।
सच्चाई जिसने तूफान ला दिया
27 अप्रैल की दोपहर उसने नानावती को एक ऐसी सच्चाई बताई, जिसने उनकी दुनिया में तूफान ला दिया। सिल्विया ने अपने पति नानावती को बताया कि वह किसी और से प्यार करती है। और ये और कोई और नहीं था, बल्कि उन्हीं का पारिवारिक मित्र प्रेम आहूजा था।
सिल्विया की उस आत्मस्वीकृति ने नानावती के मन पर क्या असर डाला, इसकी भनक भी उसे नहीं लग पाई। पति-पत्नी और बच्चे उस दोपहर अपनी कार से मुंबई की सड़कों पर दौड़ रहे थे। नानावती ने बीवी और बच्चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ दिया। उन्हें उस दिन का मैटिनी शो देखना था, ये पहले से तय था।उन्हें छोड़ने के बाद नानावती बांबे हॉर्बर की ओर गए, उनकी बोट उन दिनों वहीं खड़ी थी। उन्होंने कैप्टन से कहा कि वे अहमदनगर जा रहे हैं, उन्हें रिवॉल्वर और छह गोलियों की जरूरत है। उन्होंने बंदूक एक पैकेट में रखी और अपनी कार से यूनिवर्सल मोटर्स की ओर बढ़ गए। ये पेडर रोड पर गाड़ियों का शोरूम था, जिसका मालिक प्रेम आहूजा था।
फरेब उसका हुनर था इश्क खास शौक
उस समय कार में नौसेना का एक अधिकारी सवार नहीं था, बल्कि एक ऐसा पति था, जिसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया था और उसी के दोस्त की बाहों में सो गई थी। नानावती के पास रिवॉल्वर और छह गोलियां थी।आहूजा उस दोपहर अपने शोरूम पर नहीं था। वह लंच करने घर गया था। शोरूम पर तफ्तीश के बाद नानावती अपनी कार में लौट आए। कार मालाबार हिल की ओर मुड़ गई थी, मंजिल थी नेपियर सीरोड की सितलवाड़ लेन का एक फ्लैट। इसी फ्लैट में प्रेम आहूजा रहता था।लहराते बाल, घनी भौहें और पहनावे की खास समझ, आहूजा एक बारगी किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लगता। 34 साल का वो युवक शानदार डांसर था। फरेब उसका हुनर था, सैन्य अधिकारियों की बीवियों के साथ इश्क खास शौक। मुंबई में उन दिनों मशहूर ब्रिटिश युगीन क्लबों और सेना की पार्टियों में वह आमतौर पर मौजूद रहता। उसके झांसे में कई महिलाएं आ चुकी थी, विशेषकर वे जो अकेली होतीं।
मन के भीतर एक तूफान उठा
उस समय के मुंबई के मशहूर टेब्लॉयड ब्लिट्ज ने आहूजा के बारे में लिखा था, ”आहूजा एक ऐसा लंपट था, जिसे दूसरों के चारागाह में मुंह डालना अच्छा लगता।” आहूजा का परिवार करांची से मुंबई आया था। वो अपनी बहन मेमी की साथ रहता था।
नानावती की कार आहूजा के फ्लैट के बाहर थी और वह शॉवर के नीचे। मर्डर के इस सनसनीखेज प्लॉट पर बाद में फिल्में भी बनीं।आहूजा नहाकर बाथरूम से बाहर आया था। उसकी नौकरानी नानावती को तीसरे फ्लोर पर बने उस अपार्टमेंट तक लाई। आहूजा के अपार्टमेंट में उन्होंने खामोशी से कदम रखा। कम से कम चेहरा देखकर ये कहना मुश्किल था, मन के भीतर एक तूफान उठा हुआ है।
मेमी की चीखें और आहूजा की लाश
नानावती सीधे आहूजा के बेडरूम में गए और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। चंद मिनटों तक सन्नाटा रहा और उसके बाद तीन गोलियों की आवाज सुनाई दी। आहूजा लहूलुहान जमीन पर गिरा तो उसके बदन पर बस एक तौलिया था। नानावती अपार्टमेंट से बाहर निकल आए। वहां अब केवल मेमी की चीखें थीं और आहूजा की लाश।
नानावती अपने कार से मालाबार हिल की ओर बढ़ गए। राजभवन के गेट पर रुककर उन्होंने एक कांस्टेबल से नजदीकी पुलिस स्टेशन का पता पूछा। वे उस स्टेशन में गए और आत्मसमर्पण कर दिया। गामदेवी पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मचारी कुछ क्षणों के लिए सकते में आ गए।
माउंटबेटन ने प्रशंसा की थी
वे नौसेना के उन अधिकारियों में से एक थे, जिनकी भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माउंटबेटन ने विशेष रूप से प्रशंसा की थी, तब जबकि अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे।महज 37 साल के नानावती न केवल अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का विशेष ध्यान रखते, बल्कि एक आम नागरिक के रूप में अपने आदर्शों को लेकर वे सचेत थे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ कि उन्हीं के हाथों मर्डर हो गया। एक ऐसा मर्डर जो मीडिया की सुर्खियां बना।सिल्विया से नानावती की भेंट 1949 में लंदन में हुई थी।पारसी कमांडर कवास मानेकशॉ नानावटी इंग्लिश पत्नी सिल्विया और बच्चों के साथ मुंबई में रहते थे।नानावटी घर से दूर रहते थे औरपत्नी सिल्विया का अफेयर पति के दोस्त प्रेम आहूजा के साथ शुरू हो गया। 21 अप्रैल 1959 को सिल्विया ने नानावटी को सब कुछ बताया और कहा कि प्रेम उनसे शादी नहीं करना चाहते हैं।
सच्चाई जिसने तूफान ला दिया
27 अप्रैल की दोपहर उसने नानावती को एक ऐसी सच्चाई बताई, जिसने उनकी दुनिया में तूफान ला दिया। सिल्विया ने अपने पति नानावती को बताया कि वह किसी और से प्यार करती है। और ये और कोई और नहीं था, बल्कि उन्हीं का पारिवारिक मित्र प्रेम आहूजा था।
सिल्विया की उस आत्मस्वीकृति ने नानावती के मन पर क्या असर डाला, इसकी भनक भी उसे नहीं लग पाई। पति-पत्नी और बच्चे उस दोपहर अपनी कार से मुंबई की सड़कों पर दौड़ रहे थे। नानावती ने बीवी और बच्चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ दिया। उन्हें उस दिन का मैटिनी शो देखना था, ये पहले से तय था।उन्हें छोड़ने के बाद नानावती बांबे हॉर्बर की ओर गए, उनकी बोट उन दिनों वहीं खड़ी थी। उन्होंने कैप्टन से कहा कि वे अहमदनगर जा रहे हैं, उन्हें रिवॉल्वर और छह गोलियों की जरूरत है। उन्होंने बंदूक एक पैकेट में रखी और अपनी कार से यूनिवर्सल मोटर्स की ओर बढ़ गए। ये पेडर रोड पर गाड़ियों का शोरूम था, जिसका मालिक प्रेम आहूजा था।
फरेब उसका हुनर था इश्क खास शौक
उस समय कार में नौसेना का एक अधिकारी सवार नहीं था, बल्कि एक ऐसा पति था, जिसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया था और उसी के दोस्त की बाहों में सो गई थी। नानावती के पास रिवॉल्वर और छह गोलियां थी।आहूजा उस दोपहर अपने शोरूम पर नहीं था। वह लंच करने घर गया था। शोरूम पर तफ्तीश के बाद नानावती अपनी कार में लौट आए। कार मालाबार हिल की ओर मुड़ गई थी, मंजिल थी नेपियर सीरोड की सितलवाड़ लेन का एक फ्लैट। इसी फ्लैट में प्रेम आहूजा रहता था।लहराते बाल, घनी भौहें और पहनावे की खास समझ, आहूजा एक बारगी किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लगता। 34 साल का वो युवक शानदार डांसर था। फरेब उसका हुनर था, सैन्य अधिकारियों की बीवियों के साथ इश्क खास शौक। मुंबई में उन दिनों मशहूर ब्रिटिश युगीन क्लबों और सेना की पार्टियों में वह आमतौर पर मौजूद रहता। उसके झांसे में कई महिलाएं आ चुकी थी, विशेषकर वे जो अकेली होतीं।
मन के भीतर एक तूफान उठा
उस समय के मुंबई के मशहूर टेब्लॉयड ब्लिट्ज ने आहूजा के बारे में लिखा था, ”आहूजा एक ऐसा लंपट था, जिसे दूसरों के चारागाह में मुंह डालना अच्छा लगता।” आहूजा का परिवार करांची से मुंबई आया था। वो अपनी बहन मेमी की साथ रहता था।
नानावती की कार आहूजा के फ्लैट के बाहर थी और वह शॉवर के नीचे। मर्डर के इस सनसनीखेज प्लॉट पर बाद में फिल्में भी बनीं।आहूजा नहाकर बाथरूम से बाहर आया था। उसकी नौकरानी नानावती को तीसरे फ्लोर पर बने उस अपार्टमेंट तक लाई। आहूजा के अपार्टमेंट में उन्होंने खामोशी से कदम रखा। कम से कम चेहरा देखकर ये कहना मुश्किल था, मन के भीतर एक तूफान उठा हुआ है।
मेमी की चीखें और आहूजा की लाश
नानावती सीधे आहूजा के बेडरूम में गए और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। चंद मिनटों तक सन्नाटा रहा और उसके बाद तीन गोलियों की आवाज सुनाई दी। आहूजा लहूलुहान जमीन पर गिरा तो उसके बदन पर बस एक तौलिया था। नानावती अपार्टमेंट से बाहर निकल आए। वहां अब केवल मेमी की चीखें थीं और आहूजा की लाश।
नानावती अपने कार से मालाबार हिल की ओर बढ़ गए। राजभवन के गेट पर रुककर उन्होंने एक कांस्टेबल से नजदीकी पुलिस स्टेशन का पता पूछा। वे उस स्टेशन में गए और आत्मसमर्पण कर दिया। गामदेवी पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मचारी कुछ क्षणों के लिए सकते में आ गए।
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तारीख: 27 अप्रैल 1959, पुलिस स्टेशन, बॉम्बे
कमांडर नानावटी: मैंने एक आदमी को गोली मारी.
इंस्पेक्टर लोबो: वो मर चुका है. मुझे अभी गामदेवी पुलिस स्टेशन से ये मैसेज मिला. कमांडर नानावटी, क्या आप चाय पिएंगे?
कमांडर नानावटी: बस एक ग्लास पानी.
इंस्पेक्टर लोबो: वो मर चुका है. मुझे अभी गामदेवी पुलिस स्टेशन से ये मैसेज मिला. कमांडर नानावटी, क्या आप चाय पिएंगे?
कमांडर नानावटी: बस एक ग्लास पानी.
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नौसेना का आला अधिकारी, खूबसूरत बीवी, अवैध रिश्ते और मुंबई की चकाचौंध के चर्चित चेहरे प्रेम आहूजा की हत्या, ये एक ऐसा मामला था, जिससे न शहर का आम-ओ-खास दहल गया, बल्कि न्याय प्रणाली भी हिल उठी।वेस्टर्न नेवल कमांड के मार्शल की सलाह पर नानावटी ने मुंबई के डिप्टी कमिश्नर के सामने सरेंडर कर दिया। नानावटी को एक सच्चा देशभक्त माना जाता था और उनके इस गुनाह का कोई और गवाह नहीं था।आहूजा की बहन मैमी नेइस बात को खारिज कर दिया कि गुस्से में उनके भाई की हत्या नहीं हुई थी।
23 सितंबर 1959. खचाखच भरे डिस्ट्रिक और सेशन कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई. जज थे आरबी मेहता. ये केस सबसे पहले ज्यूरी में चला. ज्यूरी में कुल 9 मेंबर थे. दो पारसी, एक एंग्लो इंडियन, एक क्रिश्चियन और पांच हिंदू. सरकार की तरफ से चीफ पब्लिक प्रोसिक्यूटर सी. एम त्रिवेदी ने नानावटी पर प्रेम आहूजा की इरादतन हत्या का चार्ज लगाया. डिफेंस की तरफ से फेमस क्रिमिनल लॉयर कार्ल जे खंडालावाला केस लड़ रहे थे. ये पूरा ट्रायल एक महीने चला. ज्यूरी मेंबर्स क्राइम सीन वाली जगह तक गए.
आहूजा के वकीलों ने कहा, नानावटी ने प्लान कर मर्डर किया था. सबूत पेश किए गए. 24 गवाहों की गवाही हुई. जिन इंस्पेक्टर लोबो के सामने नानावटी ने सरेंडर किया था, उनकी गवाही भी हुई. लेकिन लोबो के सामने नानावटी के कबूलनामे को ज्यूरी के सामने इसलिए भी नहीं माना गया, क्योंकि गवाही मैजेस्ट्रियल सुपरविजन में नहीं हुई थी. लोबो ने कोर्ट में लिखकर कहा:
‘नानावटी ने जब सरेंडर किया, तब उन्होंने अपनी ऑफिस ड्रेस पहने हुई थी. सफेद ड्रेस. इस ड्रेस में खून का एक भी धब्बा नहीं था.’
लोबो के इस बयान के बारे में आहूजा का केस लड़ रहे वकीलों ने कहा, ‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नानावटी ने आहूजा को जानबूझकर दूर से मारा, ताकि कोई सबूत न रह जाए.’ डिफेंस के वकीलों ने कोर्ट में तमाम सबूत पेश किए, कि प्रेम आहूजा की मौत महज एक हादसा थी. नानावटी की तरफ से सेल्विया ने भी कोर्ट में गवाही दी. मंजर कोर्ट का कुछ यूं था कि दो दिन नानावटी विटनेस बॉक्स में खड़ा रहा.
मर्डर का लव ट्रॉयंगल
सेल्विया और नानावटी ने कोर्ट में कहा:
‘मैंने प्रेम आहूजा को इरादतन नहीं मारा. हां मैं प्रेम आहूजा के पास गया था. ताकि उससे पूछ सकूं कि क्या वो मेरी पत्नी सेल्विया से शादी करेगा. और मेरे बच्चों का ख्याल रखेगा. क्योंकि मेरी वाइफ सेल्विया को उससे प्यार हो गया था. लेकिन प्रेम आहूजा ने बात करने की बजाय झगड़ना शुरू कर दिया. प्रेम आहूजा ने मेरे सवालों के जवाब में कहा, ‘क्या मैं हर उस औरत से शादी कर लूं, जिनके साथ मैं बिस्तर पर सोया हूं. गेट आउट फ्रॉम हेयर.’ इसके बाद हम दोनों में झड़प हो गई. दोनों की झड़प में रिवॉल्वर लिफाफे समेत नीचे गिर गई. मैंने जल्दी से रिवॉल्वर उठा ली. प्रेम मुझसे रिवॉल्वर छीनने लगा, इसी झड़प के दौरान दो गोलियां चली. अगर मैं सच में प्रेम आहूजा को मारना चाहता तो मैं उसे तब ही गोलियों से छलनी कर देता, जब वो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था.’ –नानावटी, विटनेस बॉक्स मेंआहूजा के साथ जब तक मैं फिजिकल नहीं हुई थी, तब तक वो हमेशा वादे करता था कि वो मुझसे शादी करेगा. लेकिन जब हम दोनों ने सेक्स कर लिया. उसके बाद वो अपनी बात से पलट गया. प्रेम आहूजा से मेरे रिलेशन के बारे में जब मैंने नानावटी को बताया तो उसने मुझसे पूछा कि क्या वो शादी करेगा. मेरे पास इस बात का जवाब नहीं था. मैं चुप थी. नानावटी ने मुझसे कहा कि वो आहूजा से मेरे बारे में बात करने जा रहा है कि क्या वो तुम्हें अपनाएगा. मैंने नानावटी से बहुत कहा कि वो ऐसा न करे, आहूजा तुम्हें गोली मार देगा. लेकिन वो नहीं माना. और कहा- तुम मेरी फिक्र मत करो. ये अब मायने नहीं रखता. वैसे भी मैं खुद को मार दूंगा. जब मेरे पति नानावटी ने ऐसा कहा तो मैंने उसकी बांहें पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा- तुम्हारी कोई गलती नहीं है, तुम खुद को क्यों मारोगे.- सेल्विया
नानावटी का जलवा
केस की सुनवाई के दौरान नानावटी की दीवानगी हर तरफ थी. कोर्ट की गैलरी में लड़कियां सज धज कर आती थीं. द न्यू यॉर्कर की जर्नलिस्ट एमिली हाहन के मुताबिक, लड़कियां केस की सुनवाई के लिए ऐसे सजकर आतीं, जैसे ओपेरा जा रही हों. मैडल और सफेद नेवी ड्रेस में कमांडर नानावटी कमाल लगता था. लोग नानावटी से मुहब्बत करने लगे थे.
केस की सुनवाई के दौरान नानावटी की दीवानगी हर तरफ थी. कोर्ट की गैलरी में लड़कियां सज धज कर आती थीं. द न्यू यॉर्कर की जर्नलिस्ट एमिली हाहन के मुताबिक, लड़कियां केस की सुनवाई के लिए ऐसे सजकर आतीं, जैसे ओपेरा जा रही हों. मैडल और सफेद नेवी ड्रेस में कमांडर नानावटी कमाल लगता था. लोग नानावटी से मुहब्बत करने लगे थे.
पारसी और सिंधी समुदाय के बीच मनमुटाव
नानावती पर चले मुकदमा की दुनिया भर में चर्चा हुई । मामले में शुरुआती किरदार तीन ही थे, लेकिन बाद में राम जेठमलानी और विजय लक्ष्मी पंडित जैसी शख्सियतों का नाम केस से जुड़ा। उस जमाने के मशहूर पत्रकार और ब्लिट्ज के संपादक वीके करांजिया ने भी केस में अहम भूमिका निभाई।ब्लिट्ज ने उस दौर में जैसी रिपोर्टिंग की, उसे मुल्क का पहला मीडिया ट्रायल माना गया। सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक तकरीबन ढाई साल तक केस चला और करांजिया ने नानावती को बरी करने के लिए अपने अखबार का भरपूर इस्तेमाल किया।
करांजिया पारसी थे और नानावती भी। इसलिए करांजिया की सहानुभूति स्वाभविक तौर नानावती की ओर रही, जबकि जेठमलानी ने प्रेम आहूजा की ओर से मुकदमा लड़ा। दोनों ही सिंधी थे। ये एक ऐसा केस था, जिसकी चर्चा बड़ापाव की दुकानों पर भी हुई और पांच सितारा पार्टियों में भी। ये केस पारसी और सिंधी समुदाय के बीच मनमुटाव का कारण भी बना।
करांजिया पारसी थे और नानावती भी। इसलिए करांजिया की सहानुभूति स्वाभविक तौर नानावती की ओर रही, जबकि जेठमलानी ने प्रेम आहूजा की ओर से मुकदमा लड़ा। दोनों ही सिंधी थे। ये एक ऐसा केस था, जिसकी चर्चा बड़ापाव की दुकानों पर भी हुई और पांच सितारा पार्टियों में भी। ये केस पारसी और सिंधी समुदाय के बीच मनमुटाव का कारण भी बना।
भगवान की नजर में कोई अपराध नहीं
नानावटी के वकील कार्ल खंडालावाला ने ज्यूरी के सामने कहा, ‘प्रेम आहूजा की मौत बस एक हादसा है. नानावटी के खिलाफ एक भी पुख्ता सबूत नहीं है. कमांडर नानावटी ने इस देश के कानून, भगवान की नजर में कोई अपराध नहीं किया है. मैं किसी दया या सिम्पेथी की उम्मीद नहीं करता हूं. मैं बस चाहता हूं कि फैक्टस के आधार पर फैसला हो.’प्रेम आहूजा और सरकार की तरफ से केस लड़ रहे वकील त्रिवेदी ने कहा, सबूत ये साफ कह रहे हैं कि नानावटी ने जानबूझकर प्रेम आहूजा का मर्डर किया. सारे सबूत नानावटी के खिलाफ हैं. लेकिन इस केस की एक्सपशनल सर्कमस्टेंशस को देखते हुए ज्यूरी नानावटी को गिल्टी करार देने का फैसला वापस ले सकती है.’
नानावती को माफ करने की मांग
पारसी समाज ने नानावती के केस को मध्य वर्ग के नैतिक मूल्यों से जोड़ दिया और आहूजा के क्रियाकलापों को चरित्रहीनता करार दिया। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल से नानावती को माफ करने की मांग की।नानावटी पारसी थे तो आहूजा सिंधी और केस की वजह से दोनों समुदायों के बीच तनाव का माहौल था।1961 की सर्दियों में सुप्रीम कोर्ट ने नानावती को उम्रकैद की सजा सुनाई, इसके बाद नानावटी ने सजा के खिलाफ वर्ष 1961 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1961 पर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि कुछ दिनों बाद सरकार ने उन्हें माफी दे दी और वे जेल से बाहर आ गए। नानावती पर धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, हालांकि जूरी ने उन्हें 302 के तहज दोषी नहीं माना। जूरी ने अपने फैसले में उन्हें 8-1 के मत से निर्दोष करार दिया।
बांबे हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत में दोबारा ट्रायल चला। प्रेम आहूजा मर्डर केस भारत में जूरी ट्रायल का अंतिम केस बना। सरकार ने इसके बाद जूरी ट्रायल का सिस्टम ही खत्म कर दिया। कई रिपोर्टों में ये भी कहा गया कि नानावती के पक्ष में दिया गया जूरी की फैसला मीडिया की दलीलों से प्रभावित था।
बांबे हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत में दोबारा ट्रायल चला। प्रेम आहूजा मर्डर केस भारत में जूरी ट्रायल का अंतिम केस बना। सरकार ने इसके बाद जूरी ट्रायल का सिस्टम ही खत्म कर दिया। कई रिपोर्टों में ये भी कहा गया कि नानावती के पक्ष में दिया गया जूरी की फैसला मीडिया की दलीलों से प्रभावित था।
नानावटी तीन वर्ष जेल में बिताने के बाद रिहा
बता दें नानावटी पारसी कम्युनिटी से था. और प्रेम आहूजा सिंधी. ऐसे में नानावटी को रिहा करने को लेकर एक पॉलिटिकल डर ये भी था कि कहीं सिंधी बुरा न मान जाएं. लेकिन तभी एक सिंधी ट्रेडर भाईप्रताप को फर्जी लाइसेंस मामले में जेल हो गई. भाईप्रताप को सिंधियों का सपोर्ट था. भाईप्रताप की रिहाई की मांग की जाने लगी. तर्क दो दिए गए. क्राइम छोटा है और दूजा फ्रीडम फाइटर बैकग्राउंड.
महाराष्ट्र की राज्यपाल विजय लक्ष्मी पंडित को सिंधी बिजनेसमैन भाई प्रताप की दया याचिका मिली थी। भाई प्रताप को माफी देने की बात पर ब्यूरोक्रेट्स सहमत थे और फिर नानावटी को भी माफी देने की बात हुई। विजय लक्ष्मी पंडित ने कहा कि भाई प्रताप को नानावटी को माफी मिलने के बाद माफी दी जाएगी। उन्होंने यह फैसला दोनों समुदायों में शांति और सौहार्द स्थापित हो सके इस वजह से दिया था।उधर, प्रेम आहूजा की बहन मैमी ने लिखित में नानावटी को माफ करने के लिए अपील की. मैमी ने कहा कि उसे नानावटी के रिहा होने से कोई दिक्कत नहीं है. दोनों पार्टियों के बीच समझौते की बात की जाने लगी. तब काम आए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी. जेठमलानी ने दोनों ग्रुप्स के बीच समझौता कराया. तब मुंबई की गवर्नर थीं नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित. गवर्नर विजयलक्ष्मी पंडित ने एक ही दिन नानावटी और भाईप्रताप को जेल से रिहा कर दिया. तारीख थी 17 मार्च 1964. तीन साल से कम वक्त जेल में रहने के बाद नानावटी जेल से रिहा हो चुका था. इसके बाद वह पत्नी सिल्विया और बच्चों के साथ कनाडा चले गए और फिर किसी ने उनका नाम नहीं सुना। वर्ष 2003 में जब उनकी मौत हुई तो कई वर्षों बाद उनकी खबर भारत आई। आज भी सिल्विया अपने बच्चों के साथ कनाडा में ही हैं।
‘आहूजा तौलिया’ और ‘नानावती रिवॉल्वर’
करांजिया ने उस समय नानावती का खुलकर समर्थन किया। नानावती केस की रिपोर्टिंग का नतीजा ये था कि ब्लिट्ज की कॉपिया उस समय आठ गुना कीमत पर बिकीं। इस केस की लोकप्रियता ऐसी थी कि ‘आहूजा तौलिया’ और ‘नानावती रिवॉल्वर’ जैसे खिलौने भी बाजार में बिके पारसियों ने नानावती के समर्थन में मुंबई में सभाएं की, जिनमें कॉसाजी जहांगीर हॉल में की गई सभा सबसे बड़ी मानी जाती है। उस सभा में तकरीबन 8 हजार लोग शामिल हुए। नौसेना और पारसी पंचायत ने भी नानावती का समर्थन किया।
नेहरू के करीबी मेनन के रक्षा सहायक
नानावती की रिहाई का किस्सा भी रोचक रहा। वे दरअसल वीके कृष्ण मेनन के रक्षा सहायक रह चुके थे। कृष्ण मेनन उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के करीबी थे। जब नानावती का केस चल रहा था, नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित महाराष्ट्र की राज्यपाल थीं।माना जाता है कि एक ईमानदार और जांबाज अधिकारी की छवि, अपने पक्ष में बने माहौल और नेहरू के करीबियों के करीबी होने का नानावती को लाभ मिला और वे रिहा हो गए।केएम नानावती का केस बॉलीवुड फिल्मों और उपन्यासों का विषय भी बना। 1963 में आरके नय्यर ने सुनील दत्त को लेकर ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ बनाई। ये संस्पेंस थ्रिलर थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। फिल्म में डिसक्लेमर दिया गया था कि इसके सभी पात्र और कहानियां काल्पनिक हैं।
फिल्म की नायिका लीला नायडू ने 2010 में अपनी किताब में संकेत दिया कि ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ का स्क्रीनप्ले नानावती केस से पहले ही तैयार हो गया था। गुलजार ने 1973 में विनोद खन्ना को लेकर ‘अचानक’ बनाई। ये फिल्म नानावती केस पर ही आधारित थी और बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। इंदिरा सिन्हा ने नानावती केस को ही आधार बनाकर एक किताब लिखी -‘दी डेथ ऑफ मिस्टर लव’।सलमान रुश्दी की किताब मिडनाइट चिल्ड्रन के एक चेप्टर ‘कमांडर साबरमती बैटन’ को नानावती केस से प्रेरित माना गया।
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