कुम्भनदास
- संतन को कहा सीकरी सों काम ?
- आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।
- जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।
- कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।
- भगत को कहा सीकरी काम।
- आवत जात पन्हैयां टूटीं, बिसरि गयो हरिनाम।।
- जाको मुख देखैं दुख लागै, ताको करनो पर्यो प्रनाम।
- ‘कुंभनदास’ लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।
अकबर के समक्ष गायन
एक बार मुग़ल बादशाह अकबर की राजसभा में एक गायक ने कुम्भनदास का पद गाया। बादशाह ने उस पद से आकृष्ट होकर कुम्भनदास को फ़तेहपुर सीकरी बुलाया। पहले तो कुम्भनदास जाना नहीं चाहते थे, पर सैनिक और दूतों का विशेष आग्रह देखकर वे पैदल ही गये। श्रीनाथ जी के सभा सदस्य को अकबर का ऐश्वर्य दो कौड़ी का लगा। कुम्भनदास की पगड़ी फटी हुई थी, तनिया मैली थी, वे आत्मग्लानि में डूब रहे थे कि किस पाप के फलस्वरूप उन्हें इनके सामने उपस्थित होना पड़ा। बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की, पर कुम्भनदास को तो ऐसा लगा कि किसी ने उनको नरक में लाकर खड़ा कर दिया है। वे सोचने लगे कि राजसभा से तो कहीं उत्तम ब्रज है, जिसमें स्वयं श्रीनाथ जी खेलते रहते हैं, अनेकों क्रीड़ाएं करते करते रहते हैं। अकबर ने पद गाने की प्रार्थना की। कुम्भनदास तो भगवान श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य-माधुर्य के कवि थे, उन्होंने पद-गान किया-
बादशाह सहृदय थे, उन्होंने आदरपूर्वक उनको घर भेज दिया।
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