Friday, 2 March 2018

ईमान को ईमान से मिलाओ इरफ़ान को इरफ़ान से मिलाओ इंसान को इंसान से मिलाओ गीता को क़ुरान से मिलाओ दैर-ओ-हरम में हो ना जंग होली खेलो हमारे संग - नज़ीर ख़य्यामी

ईमान को ईमान से मिलाओ
इरफ़ान को इरफ़ान से मिलाओ
इंसान को इंसान से मिलाओ
गीता को क़ुरान से मिलाओ
दैर-ओ-हरम में हो ना जंग
होली खेलो हमारे संग
नज़ीर ख़य्यामी


आज रंग है, हे मां रंग है री
मोरे महबूब के घर रंग है री
हज़रत अमीर ख़ुसरो

बाबा बुल्लेशाह ने लिखा है-
होरी खेलूंगी, कह बिसमिल्लाह,
नाम नबी की रत चढ़ी, बूंद पड़ी अल्लाह अल्लाह.

आज होरी रे मोहन होरी,
काल हमारे आंगन गारी दई आयो, सो कोरी,
अब के दूर बैठे मैया धिंग, निकासो कुंज बिहारी
इब्राहिम रसख़ान (1548-1603)

मुहैया सब है अब असबाब ए होली
उठो यारों भरो रंगों से जाली
शेख़ ज़हूरुद्दीन हातिम

क्यों मोपे मारी रंग की पिचकारी
देख कुंवरजी दूंगी गारी (गाली)
बहादुर शाह ज़फ़र

होली खेला सिफ़-उद-दौला वज़ीर,
रंग सोहबत से अजब हैं ख़ुर्द-ओ-पीर

मीर तक़ी मीर (1723-1810)


मोरे कान्हा जो आए पलट के
अबके होली मैं खेलूंगी डट के
वाजिद अली शाह

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की,
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी


''कौन कहता है कि होली हिंदुओं का त्योहार है?''
मुंशी ज़काउल्लाह

कहीं पड़े ना मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में
गले में डाल दो बाहों का हार होली में
उतारो एक बरस का ख़ुमार होली में
-नज़ीर बनारसी


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