Tuesday, 19 November 2019

ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता 'दस्तूर' हबीब जालिब:

'दस्तूर' हबीब जालिब:
दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

हबीब जालिब 1929 - 1993लाहौर, पाकिस्तान लोकप्रिय और क्रांतिकारी पाकिस्तानी शायर , राजनैतिक दमन के विरोध के लिए प्रसिद्ध

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से
ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा

Monday, 21 October 2019

पाकीज़ा अज़ानों में मीरा के भजन गूंजें नौ दिन के उपासन में रमज़ान की खुशबू हो

वो दौर दिखा जिसमें इंसान की ख़ूशबू हो इंसान की आखों में ईमान की खुशबू हो पाकीज़ा अज़ानों में मीरा के भजन गूंजें नौ दिन के उपासन में रमज़ान की खुशबू हो मैं उसमें नज़र आऊं वो मुझमें नज़र आये इस जान की खुशबू में उस जान की खुशबू हो




छपी हिंदी तो गीता... उर्दू छपी तो क़ुरान नजर आई... भूल कर अस्तित्व लोगों को... एक कागज़ भी हिंदू- मुसलमान नज़र आया।

Tuesday, 8 October 2019

कुम्भनदास संतन को कहा सीकरी सों काम ? आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।। जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।। कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।


कुम्भनदास


संतन को कहा सीकरी सों काम ?
आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।।
जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम।।
कुभंनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।

अकबर के समक्ष गायन


एक बार मुग़ल बादशाह अकबर की राजसभा में एक गायक ने कुम्भनदास का पद गाया। बादशाह ने उस पद से आकृष्ट होकर कुम्भनदास को फ़तेहपुर सीकरी बुलाया। पहले तो कुम्भनदास जाना नहीं चाहते थे,  पर सैनिक और दूतों का विशेष आग्रह देखकर वे पैदल ही गये। श्रीनाथ जी के सभा सदस्य को अकबर का ऐश्वर्य दो कौड़ी का लगा। कुम्भनदास की पगड़ी फटी हुई थी, तनिया मैली थी, वे आत्मग्लानि में डूब रहे थे कि किस पाप के फलस्वरूप उन्हें इनके सामने उपस्थित होना पड़ा। बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की, पर कुम्भनदास को तो ऐसा लगा कि किसी ने उनको नरक में लाकर खड़ा कर दिया है। वे सोचने लगे कि राजसभा से तो कहीं उत्तम ब्रज है, जिसमें स्वयं श्रीनाथ जी खेलते रहते हैं, अनेकों क्रीड़ाएं करते करते रहते हैं। अकबर ने पद गाने की प्रार्थना की। कुम्भनदास तो भगवान श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य-माधुर्य के कवि थे, उन्होंने पद-गान किया-
भगत को कहा सीकरी काम।
आवत जात पन्हैयां टूटीं, बिसरि गयो हरिनाम।।
जाको मुख देखैं दुख लागै, ताको करनो पर्‌यो प्रनाम।
‘कुंभनदास’ लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम।।
बादशाह सहृदय थे, उन्होंने आदरपूर्वक उनको घर भेज दिया।

Wednesday, 25 September 2019

हाईकोर्ट ने पूछा-'तथ्यों को छिपाकर कैसे ले ली अभियोजन की मंजूरी'






हाईकोर्ट ने पूछा-'तथ्यों को छिपाकर कैसे ले ली अभियोजन की मंजूरी'

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, लोकायुक्त एसपी सहित अन्य से पूछा कि तथ्यों को छिपाकर सहायक अभियंता के खिलाफ अभियोजन चलाने की मंजूरी कैसे ले ली गई? न्यायमूर्ति सुजय पॉल व जस्टिस बीके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने सभी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया।
जबलपुर निवासी रविशंकर सिंह ने याचिका में कहा कि वह पूर्व क्षेत्र विवि कंपनी में सहायक अभियंता हैं। बीते दिनों उसके खिलाफ लोकायुक्त पुलिस ने अपराधिक प्रकरण दर्ज किया। इस मामले में विभागीय अभियोजन स्वीकृति लेने के लिए लोकायुक्त ने तथ्य छिपाकर जानकारी पेश की। अधिवक्ता विजय राघव सिंह, अजय नंदा, मनोज चतुर्वेदी ने दलील दी कि उक्त मंजूरी दोषपूर्ण है,अतः खारिज की जाए। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने अनावेदकों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

Tuesday, 17 September 2019

DAINIK BHASKAR JABALPUR 18.09.2019 PAGE 3 RAVI SHANKER SINGH


DAINIK BHASKAR JABALPUR 18.09.2019 PAGE 3
DAINIK BHASKAR JABALPUR 18.09.2019 PAGE 3 RAVI SHANKER SINGH

सहायक अभियंता की बर्खास्तगी पर रोक

सहायक अभियंता की बर्खास्तगी पर रोक

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी डिण्डौरी में पदस्थ एक सहायक अभियंता की बर्खास्तगी आदेश पर स्थगन आदेश जारी किया है। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध संचालक, सीई जबलपुर क्षेत्र और एसई डिण्डौरी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब-तलब किया है। अधिवक्ता विजय राघव सिंह और मनोज चतुर्वेदी ने दलील दी कि सहायक अभियंता रविशंकर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम का प्रकरण दर्ज किया गया है। 5 सितंबर 2019 को जबलपुर क्षेत्र के सीई ने आदेश जारी कर उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया है। याचिकाकर्ता की सेवा समाप्त करने के पहले उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। एकलपीठ ने सहायक अभियंता की बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी है।

बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने किया ग्राहकों का सम्मान

... जबलपुर। नईदुनिया रिपोर्टर बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने होटल समदड़िया में 85वां स्थापना दिवस मनाया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मधु यादव रहीं। विशिष्ट अतिथि शारदा शक्ति पीठ, मैहर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद महाराज उपस्थित रहे। कार्यक्रम में जबलपुर अंचल के अंचल प्रमुख वैभव काले व उप अंचल प्रबंधक वीपी खापेकर व एआरबी के मुखिया जय सिम्हा रेड्डी ने आए हुए सभी ग्राहक
बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने होटल समदड़िया में 85वां स्थापना दिवस मनाया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मधु यादव रहीं। विशिष्ट अतिथि शारदा शक्ति पीठ, मैहर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद महाराज उपस्थित रहे। कार्यक्रम में जबलपुर अंचल के अंचल प्रमुख वैभव काले व उप अंचल प्रबंधक वीपी खापेकर व एआरबी के मुखिया जय सिम्हा रेड्डी ने आए हुए सभी ग्राहकों का सम्मान किया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी ग्राहकों को वैभव काले ने अपने अंचल की शाखाओं व व्यापार के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में अंचल की शाखाओं में से कुछ शाखाएं जिन्होंने उत्कृष्ट कार्य किया उनके शाखा प्रबंधकों को अतिथियों व अंचल प्रबंधक व उप अंचल प्रबंधक द्वारा सम्मानित किया गया। अंचल द्वारा हिंदी माह के अंतर्गत आयोजित स्पर्धा में अव्वल आए प्रतिभागियों को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन अंचल कार्यालय के वरिष्ठ प्रबंधक आलोक कुमार ने किया। स्वागत भाषण अंचल कार्यालय में कार्यरत सीपीसी की मुखिया संजू कुमारी व आभार प्रदर्शन वसूली विभाग के मुखिया राजकिशोर रंजीत ने किया। आयोजन में जबलपुर अंचल कार्यालय के अधिकारी, कर्मचारी व शहर, बाहर से आए सभी मुख्य प्रबंधकों व शाखा प्रबंधकों का सहयोग रहा।

Monday, 16 September 2019

ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो


एक ही विषय पर 6 महान शायरों का नजरिया –

Mirza Ghalib :

“शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर

या वो जगह बता जहाँ पर ख़ुदा नहीं”

Iqbal :

“मस्जिद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं ,

काफिर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं ”


Ahmad Faraz :

“काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर वहाँ पर 

जगह नही,

खुदा मौजूद है वहा भी, काफिर को पता नहीं ”





Wasi : “खुदा तो मौजूद दुनिया में कही भी जगह 

नही,

तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं ”

Saqi :

“पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए अौर कुछ 

नही,

जन्नत में कहाँ ग़म है वहाँ पीने में मजा नहीं”

Sharabi:

“हम पीते हैं मज़े के लिए, बेवजह बदनाम गम है,

पुरी बोतल पीकर देखों, फिर दुनिया क्या जन्नत से 

कम है

Saturday, 29 June 2019

‘कैसे बेशर्म आशिक हैं ये आज के, इनको अपना बनाना गजब हो गया.’

‘कैसे बेशर्म आशिक हैं ये आज के, इनको अपना बनाना गजब हो गया.’


ये कव्वाली पुरानी है. इमरजेंसी लगने से पहले की कव्वाली. 1972 में एक फिल्म आई थी पुतलीबाई. उस में भी थी ये कव्वाली. लिखा था जफर गोरखपुरी ने. कव्वाली को गाया था राशिदा खातून और युसूफ आजाद ने.

‘जग में मौला ने सोचा मर्द को पैदा करे
सबसे पहले ये सवाल आया के कुदरत क्या करे
पत्थरों से संगदिली
और बेरुखी तकदीर से
कहर तूफानों से मांगा और गजब समसीर से
तो ली गधे से अक्ल और कौए से सियानापन लिया
और कुछ कुत्ते की टेढ़ी दुम से टेढ़ापन लिया
घात ली बिल्ली से और चूहे से मांगा भागना
और उल्लू से लिया रातों को इसका जागना
ले लिया तोते से आंख फेर लेने का चलन
और दिया हिज़-ओ-हवस लालच का दीवानापन
तो जहर फैलाने की आदत इसको दे दी न अक्खी
दिल दियो इसको पत्थर का और फितरत आग की
ली गई गिरगिट से हरदम रंग बदलने की अदा
जिससे औरत तो देते रहा करे धोखा सदा
तो इसको नाफरमानियां बख्शी गईं शैतान की
झूठ बोले ताकि ये कसम भगवान की
बंदरों से छीना झपटी और उछल लंगूर से
अल गरज हर चीज ले ली, पास से और दूर से
लेके मिट्टी में मसाला, जब ये मिलवाया गया
फर्क उस दम फितरत की मर्द में ये पाया गया
कि मर्द के पुतलों में जिस्म और जान दौड़ाई गई
तो उसमें औरत की अदा भी थोड़ी सी पाई गई
औरतों में मर्द की सूरत नहीं मिलती जनाब
पर इन्ही मर्दों में मिलते हैं जनाने बेहिसाब
शक्ल मर्दों की और आदत जनाना के हो गए
क्या तो खुदा ने चाहा था और क्या न जाने हो गए
बन चुका जब मर्द तो, मौला ने मेरे ये कहा
कि अच्छा खासा बनाया था मैंने इसे
बन गए ये जनाना, गजब हो गया..’


यहां जो क़व्वाली ट्रांस्क़्रिप्ट की शक्ल में पेश कर रहा हूं वो इन जनाब ज़फ़र गोरखपुरी की लिखी हुई है.आप गोरखपुर की बांसगाव तह्सील के एक गांव में 1935 में पैदा हुए. कई फिल्मों के लिये गाने लिखने से अलग सुनते हैं कि उर्दू शायरी में आपको बडी इज़्ज़त हासिल है. एक ज़माने में बेहद लोकप्रिय रही इस क़व्वाली में उपमाओं का जो संसार है वह ध्यान खींचता है.हमारे लिये ज़फ़र साहब को जानना महज़ इस लिये भी ज़रूरी है कि वो हमारी भाषा और बयान को ख़ालिस हिंदुस्तानी रंग देते हैं.



यूसुफ़ आज़ाद और रशीदा ख़ातून क़व्वाल अपने दौर की नामी शख़्सीयतें हैं. इनकी आवाज़ें इस उपमहाद्वीप की विविधता भरी गायकी और ख़ास मैनरिज़्म की तरफ़ इशारा करती हैं. भूलने के इस दौर-दौरे में आइये इस तरह के साहित्य और गायकी को याद करें.



फ़िल्म पुतलीबाई(1972), निर्देशक-अशोक राय, संगीत-जय कुमार, फ़िल्म में सुजीत कुमार,हीरालाल और भगवान आदि थे.
रशीदा ख़ातून:
कैसे बेशर्म आशिक़ हैं ये आज के
इनको अपना बनाना ग़ज़ब हो गया
धीरे-धीरे कलाई लगे थामने
इनको उंगली थमाना ग़ज़ब हो गया

यूसुफ़ आज़ाद क़व्वाल:
जो घर में सिल पे मसाला तलक पीस सके
उन्हें ये नाज़ हमें ख़ाक में मिलायेंगे
कलाई देखो तो चूडी का बोझ सह सके
और उसपे दावा कि तलवार हम उठायेंगे
फ़रेब--मग़्र में इनका नहीं कोई सानी
ये जिन को डंस लें वो मांगे उम्र भर पानी
बडा अजीब है दस्तूर इनकी महफ़िल का
बुलाया जाता है इज़्ज़त बढाई जाती है
फिर उसके बाद वहीं क़त्ल करके आशिक़ को
बडी ही धूम से मैय्यत उठाई जाती है
ख़ता हमारी है जो हमने उनसे प्यार किया
बुरा किया जो हसीनों पे ऐतबार किया

भूल हमसे हुई इनके आशिक़ बने
पास इनको बुलाना ग़ज़ब हो गया
ठोकरों में थे जब तक तो सीधे थे ये
इनको सर पे बिठाना ग़ज़ब हो गया

रशीदा ख़ातून:
हम औरतों को नज़र से उतारने वालो
ख़बर भी है ये शेख़ी बघारने वालो
कि इस ज़मीन पे पुतली भी एक औरत है
कि जिसमें मर्द को ललकारने की हिम्मत है
पहन के सर पे दिलेरी का ताज बैठी है
जो घर में थी वो सिंहासन पे आज बैठी है
अगर झुके तो ये दिल क्या है जान भी दे दे
जो सर उठाये तो मर्दों की जान भी ले ले
अगरचे फूल का इक हार है यही औरत
जो ज़िद पे आये तो तलवार है यही औरत
ये पुतली बनके ज़माने को मोड सकती है
उठे तो मर्द का पंजा मरोड सकती है

तेरी हिम्मत पे पुतली हमें नाज़ है
तेरा मैदां में आना ग़ज़ब हो गया

यूसुफ़ आज़ाद क़व्वाल:
एक दिन बोले फ़रिश्ते करके ये दुनिया की सैर
या खुदा दुनिया तेरी सूनी है औरत के बग़ैर
उठ पडे हिकमत दिखाने के लिये क़ुदरत के हाथ
सोच ली मौला ने औरत को जनम देने की बात
इस तरह मालिक ने की कारीगरी की इब्तिदा
चांद से मांगा उजाला नूर सूरज से लिया
रूप सैयारों से मांगा रूप ऊषा से लिया
पंखडी से ली नज़ाकत और कलियों से अदा
शाम से काजल लिया और सुबह से ग़ाज़ा लिया
बिजलियों से क़हर मांगा आग से ग़ुस्सा लिया
हौसला चट्टान से और दर्द पंछी से लिया
आसमां से ज़ुल्म मांगा सब्र धरती से लिया
शाख़ से अंगडाइयां झरनों से इठलाना लिया
बुलबुले से नाज़ुकी नद्दी से बल खाना लिया
आईनें से हैरतें तस्वीर से ख़ामोशियां
लहर से अठख़ेलियां मांगीं पवन से शोख़ियां
आंख ली हरनी से और शबनम से आंसू ले लिया
बदलियों से ज़ुल्फ़ नज़्ज़ारों से जादू ले लिया
लाजवंती से शरम और रातरानी से हया
आबरू मोती से ली सूरजमुखी से ली वफ़ा
ज़हर नागिन से लिया और सांप से डसना लिया
काटना बिच्छू से मांगा तीर से चुभना लिया
लोमडी से मांग लीं ताउम्र की मक्कारियां
मक्खियों से शोर और मच्छर से लीं अय्यारियां

इतनी चीज़ें जमा होकर जब् लगीं मौला के हाथ
और इन सब को मिलाया जब ख़ुदा ने एक साथ
तब कहीं जाकर बडी मेहनत से इक मूरत बनी
बिलनशीं पैकर बला इक दिलरुबा सूरत बनी
देखकर अपनी कलाकारी को मौला हंस पडा
और उसी अनमोल शै का नाम औरत रख दिया
रख चुका जब नाम उसके बाद ये कहने लगा.. क्या?
मैं बना कर तुझे ख़ुद परेशान हूं
तुझको दुनिया में लाना ग़ज़ब हो गया

रशीदा ख़ातून:
जब मेरे मौला ने सोचा मर्द को पैदा करे
सबसे पहले ये सवाल आया कि क़ुदरत क्या करे
पत्थरों से संगदिली और बेरुख़ी तक़दीर से
क़हर तूफ़ानों से मांगा और ग़ज़ब शम्शीर से
ली गधे से अक़्ल कौवे से सवानापन लिया
और कुछ कुत्ते की टेढी दुम से टेढापन लिया
घात ली बिल्ली से और चूहे से मांगा भागना
और उल्लू से लिया रातों को इसका जागना
ले लिया तोते से आंखें फेर लेने का चलन
भेडिये से ख़ून पीने का लिया दीवानापन
ली गयी गिरगिट से हरदम रंग बदलने की अदा
जिससे औरत को दिया करता रहे धोका सदा
इसको नाफ़रमानियां बख़्शी गयीं शैतान की
झूट बोले ताकि ये खाकर क़सम भगवान की
लेके मिट्टी मे मसाला जब ये मिलवाया गया
फ़र्क़ उस दम मर्द की फ़ितरत में ये पाया गया
मर्द के पुतलों में जिस दम जान दौडाई गई
उसमें औरत की भी थोडी सी अदा पाई गयी
औरतों में मर्द की सूरत नहीं मिलती जनाब
पर इन्हीं मर्दों में मिलते हैं जनाने बेहिसाब

शक्ल मर्दों की तो आदत के ज़नाने हो गये
क्या ख़ुदा ने चाहा था और क्या जाने हो गये
बन चुका जब मर्द तो मौला ने मेरे ये कहा.. क्या?
कि अच्छा-ख़ासा बनाया था मैने इसे
बन गया ये ज़नाना ग़ज़ब हो गया

यू..-वाह रे पुतलीबाई क्या दिलेरी दिखाई
.ख़ा.-तेरी हिम्मत के सदक़े तेरी जुर्रत के सदक़े
यू..-अपनी शोहरत का झंडा तूने दुनिया मॆं गाडा
.ख़ा.-अच्छे-अच्छों को तूने एक पल में पछाडा
यू..-तू बहादुर तू निडर अक़्ल और होश तुझमें
.ख़ा.-जिस्म औरत का लेकिन मर्द का जोश तुझमें
यू..-जिसको समझे ना कोई वो उलटफेर है तू
.ख़ा.-तेरी हिम्मत की क़सम वाक़ई शेर है तू
यू..-नारी होकर भी तूने वाह क्या गुल खिलाया
.ख़ा.-जो ना मर्दों से हुआ तूने वो कर दिखाया
यू..-तेरे ऊंचे इरादे तेरा हर काम ऊंचा
.ख़ा.-तूने औरत का जग मॆं कर दिया नाम ऊंचा
तूने जो कुछ भी मुंह से कहा कर दिया
यू./.ख़ा.-तूने जो कुछ भी मुंह से कहा कर दिया
तेरा कर के दिखाना ग़ज़ब हो गया.