Tuesday 29 December 2020

एनएसए की कार्रवाई को चुनौती, राज्य शासन से जवाब-तलब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक याचिका के जरिये एनएसए की कार्रवाई को चुनौती दी गई है।

 एनएसए की कार्रवाई को चुनौती, राज्य शासन से जवाब-तलब 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक याचिका के जरिये एनएसए की कार्रवाई को चुनौती दी गई है।

जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में एक याचिका के जरिये एनएसए की कार्रवाई को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने इस सिलसिले में राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है। अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी।


याचिकाकर्ता दमोह के कसाई मोहल्ला निवासी मोहम्मद हसनैन उर्फ गंजा की ओर से अधिवक्ता मनोज चतुर्वेदी व विजय राघव सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मनमानी कार्रवाई की गई है। वास्तव में एनएसए की कार्रवाई के लिए जो आधार अपेक्षित होता है, उस कसौटी पर यह मामला खरा नहीं उतरता। याचिकाकर्ता इतना बड़ा अपराधी नहीं है कि उसकी वजह से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ती हो या सामान्य जनजीवन पर बेहद बुरा असर पड़ रहा हो।


बहस के दौरान अवगत कराया गया कि दमोह कलेक्टर ने 14 दिसंबर 2020 को याचिकाकर्ता खिलाफ एनएसए की कार्रवाई की है। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2007 से अभी तक याचिकाकर्ता के खिलाफ 12 प्रकरण पंजीबद्ध हुए, जिनमें से वह 10 मामलों में दोषमुक्त हो चुका है। महज दो मामले विचाराधीन हैं

Wednesday 23 December 2020

D.P. Chadha vs Triyugi Narain Mishra & Ors on 5 December, 2000

 D.P. Chadha vs Triyugi Narain Mishra & Ors on 5 December, 2000


The Court is bound to accept the statement of the Judges recorded in their judgment, as to what transpired in court. It cannot allow the statement of the Judges to be contradicted by statements at the Bar or by affidavit and other evidence. If the Judges say in their judgment that something was done, said or admitted before them, that has to be the last word on the subject. The principle is well settled that statements of fact as to what transpired at the hearing, recorded in the judgment of the court, are conclusive of the facts so stated and no one can contradict such statements by affidavit or other evidence. If a party thinks that the happenings in court have been wrongly recorded in a judgment, it is incumbent upon the party, while the matter is still fresh in the minds of the Judges, to call the attention of the very Judges who have made the record to the fact that the statement made with regard to his conduct was a statement that had been made in error. That is the only way to have the record corrected. If no such step is taken, the matter must necessarily end there.

Monday 30 November 2020

GROUNDS FOR 482

 

(1) Where the allegations made in the first information report or the complaint, even if they are taken at their face value and accepted in their entirety do not prima facie constitute any offence or make out a case against the accused.

(2) Where the allegations in the first information report and other materials, if any, accompanying the FIR do not disclose a cognizable offence, justifying an investigation by police officers under Section 156(1) of the Code except under an order of a Magistrate within the purview of Section 155(2) of the Code.

(3) Where the uncontroverted allegations made in the FIR or complaint and the evidence collected in support of the same do not disclose the commission of any offence and make out a case against the accused.

(4) Where the allegations in the FIR do not constitute a cognizable offence but constitute only a non-cognizable offence, no investigation is permitted by a police officer without an order of a Magistrate as contemplated under Section 155(2) of the Code.

(5) Where the allegations made in the FIR or complaint are so absurd and inherently improbable on the basis of which no prudent person can ever reach a just conclusion that there is sufficient ground for proceeding against the accused.

(6) Where there is an express legal bar engrafted in any of the provisions of the Code or the concerned Act (under which a criminal proceeding is instituted) to the institution and continuance of the proceedings and/or where there is a specific provision in the Code or the concerned Act, providing efficacious redress for the grievance of the aggrieved party.

(7) Where a criminal proceeding is manifestly attended with mala fide and/or where the proceeding is maliciously instituted with an ulterior motive for wreaking vengeance on the accused and with a view to spite him due to private and personal grudge.

 

Friday 17 July 2020

INPORTANT https://www.bhopalsamachar.com/2020/06/jabalpur-news_53.html

जिला दंडाधिकारी कार्यालय से आज इस संबंध में जारी आदेश के मुताबिक उपखंड मजिस्‍ट्रेट पाटन सिद्धार्थ जैन 085276-73592 पाटन उपखंड क्षेत्र की शांति एवं कानून व्‍यवस्‍था की निगरानी करेंगे। इनकी सहायता के लिए तहसीलदार एवं कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेट स्‍वाति आर सूर्या 94253-24926, नायब तहसीलदार पाटन सुरभि जैन 90742-69646 और नायब तहसीलदार कटंगी आकाशदीप नामदेव 99535-17537 की ड्यूटी लगाई गई है। 

इसी प्रकार उपखंड क्षेत्र सिहोरा एवं मझौली में कानून- व्‍यवस्‍था के लिए उपखंड मजिस्‍ट्रेट सिहोरा सीपी गोहल 9977787077 को दायित्‍व सौंपा गया है। इनकी सहायता के लिए कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेट के रूप में तहसीलदार सिहोरा नीता कोरी 95895-51617, तहसीलदार मझौली अनूप श्रीवास्‍तव 9827151606, नायब तहसीलदार सिहोरा राहुल मेश्राम 9179338418, नायब तहसीलदार सिहोरा सुरेश सोनी 89826-06476 की डियूटी लगाई गई है। जबकि उपखंड क्ष्‍ेात्र शहपुरा के लिए उपखंड मजिस्‍ट्रेट शहपुरा जेपी यादव 97535-24147 को कानून व्‍यवस्‍था एवं शांति बनाए रखने का दायित्‍व सौंपा गया है। इनकी मदद के लिए कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेट नायब तहसीलदार शहपुरा प्रीति नागेंद्र 77488-97284 तथा नायब तहसीलदार शहपुरा श्‍याम नंदन चंदेले 98932-54475 की डियूटी लगाई गई है। 

इसके अलावा उपखंड क्षेत्र जबलपुर एवं पनागर की कानून व्‍यवस्‍था का दायित्‍व उपखंड मजिस्‍ट्रेट जबलपुर मणिन्‍द्र सिंह 94258-32344 को सौंपा गया है । इनकी सहायता के लिए कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेटों में तहसीलदार जबलपुर राकेश चौरसिया 62656-66659, तहसीलदार पनागर प्रमोद कुमार चतुर्वेदी 76971-21034, नायब तहसीलदार बरगी राजेंद्र शुक्‍ला 84708-51332, नायब तहसीलदार बरेला रूबी खान 77488-97284 और नायब तहसीलदार पनागर नेहा जैन 87702-87712 की तैनाती की गई है। इसी तरह उपखंड क्षेत्र रांझी में शांति एवं कानून व्‍यवस्‍था बनाने का दायित्‍व डिप्‍टी कलेक्‍टर एवं उपखंड मजिस्‍ट्रेट रांझी अनुराग तिवारी 7000246881 को सौंपा गया है। यहां की व्‍यवस्‍था के लिए कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेट के रूप में तहसीलदार रांझी राजेश सिंह 9424777456 और अतिरिक्‍त तहसीलदार रांझी नीरज तखरया 94244-48899 को जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। 

जबकि उपखंड गोरखपुर क्षेत्र के लिए उपखंड मजिस्‍ट्रेट गोरखपुर आशीष पांडे 7000637038 को कानून व्‍यवस्‍था बनाए रखने का दायित्‍व दिया गया है। इनकी सहायता के लिए कलेक्‍टर श्री भरत यादव ने कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेटों की भी डयूटी लगाई है। इनमें तहसीलदार गोरखपुर प्रदीप मिश्रा 9977347771, अतिरिक्‍त तहसीलदार गोरखपुर दिलीप चौरसिया 99266-88859 तथा नायब तहसीलदार गोरखपुर श्‍यामसुंदर आनंद 94251-59169 की डयूटी लगाई गई है। 

इसके अतिरिक्‍त उपखंड क्षेत्र अधारताल में कानून व्‍यवस्‍था के लिए उपखंड मजिस्‍ट्रेट का दायित्‍व ऋषभ जैन 9425465901 को सौंपा गया है । यहां इनकी सहायता हेतु तहसीलदार अधारताल रश्मि चतुर्वेदी 7999859590, नायब तहसीलदार अधारताल गौरव पांडे 91742-01700, नायब तहसीलदार अधारताल सुषमा धुर्वे 7470335785, नायब तहसीलदार संदीप जायसवाल 83491 51588, नायब तहसीलदार कर्तव्‍य अग्रवाल 98273-55313 और नायब तहसीलदार रूपेश्‍वरी कुंजाम 83194-38096 को संलग्‍न किया गया है। 

कलेक्‍टर भरत यादव ने सभी उपखंड व कार्यपालिक मजिस्‍ट्रेट को निर्देशित किया गया है कि वे अपने प्रभार के क्षेत्र में उपस्थित रहकर कानून व्‍यवस्‍था की स्थिति की सतत निगरानी रखें। किसी भी प्रकार की अप्रिय स्त्री की सूचना अपर जिला मजिस्‍ट्रेट शहर एक व दो तथा ग्रामीण को क्रमश: इनके मोबाइल नंबर 88264-04745, 8989125252  तथा 79995-41040 पुलिस कंट्रोल रूम को भी दें।

https://www.bhopalsamachar.com/2020/06/jabalpur-news_53.html

Monday 25 May 2020

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम. रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम. 
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है


Sunday 26 April 2020

“सब याद रखा जाएगा...सब कुछ याद रखा जाएगा...तुम्हारी लाठियों और गोलियों से कत्ल हुए हैं जो मेरे यार सब...उनकी याद में दिलों को बर्बाद रखा जाएगा...सब याद रखा जाएगा”

“सब याद रखा जाएगा...
सब कुछ याद रखा जाएगा...

तुम्हारी लाठियों और गोलियों से कत्ल हुए हैं जो मेरे 
यार सब...

उनकी याद में दिलों को बर्बाद रखा जाएगा...
सब याद रखा जाएगा”


तुम स्याहियों से झूठ लिखोगे हमें मालूम है

हो हमारे खून से ही हो सही, सच जरूर लिखा जाएगा

सब याद रखा जाएगा

मोबाइल, टेलीफोन, इंटरनेट भरी दोपहर में बंद करके

सर्द अंधेरी रात में पूरे शहर को नजरबंद करके

हथौड़ियां लेकर दफअतन मेरे घर में घुस आना

मेरा सर बदन मेरी मुख्तसर सी जिंदगी को तोड़ जाना

मेरे लख्त-ए-जिगर को बीच में चौराहे पर मार कर

यूं बेअंदाज खड़े होकर झुंड में तुम्हारा मुस्कुराना

सब याद रखा जाएगा

सब कुछ याद रखा जाएगा

दिन में मीठी-मीठी बातें करना सामने से

सब कुछ ठीक है हर जुबां में तुतलाना

रात होते ही हक मांग रहे लोगों पर लाठियां चलाना, गोलियां चलाना

हम ही पर हमला करके हम ही को हमलावर बताना

सब याद रखा जाएगा

मैं अपनी हड्डियों पर लिखकर रखूंगा ये सारे वारदात

तुम जो मांगते हो मुझसे मेरे होने के कागजात

अपनी हस्ती का तुमको सबूत जरूर दिया जाएगा

ये जंग तुम्हारी आखिरी सांस तक लड़ा जाएगा

सब याद रखा जाएगा

ये भी याद रखा जाएगा कि किस तरह तुमने वतन को तोड़ने की साजिशें की

ये भी याद रखा जाएगा कि किस जतन से हमने वतन को जोड़ने की ख्वाहिशें की

जब कभी भी जिक्र आएगा जहां में दौर-ए-बुजदिली का तुम्हारा काम याद रखा जाएगा

जब कभी भी जिक्र आएगा जहां में दौर-ए-जिंदगी का हमारा नाम याद रखा जाएगा

कि कुछ लोग थे जिनके इरादे टूटे नहीं थे लोहे की हथौड़ियों से

कि कुछ लोग थे जिनके जमीर बिके नहीं थे इजारदारों की कौड़ियों से

कि कुछ लोग थे जो टिके रहे थे तूफान-ए-नू के गुजर जाने के बाद तक

कि कुछ लोग थे जो जिंदा रहे थे अपने मौत की खबर आने के बाद तक

भले भूल जाए पलक आंखों को मूंदना

भले भूले जमीं अपनी धूरी पर घूमना

हमारे कटे परों की परवाज को

हमारे फटे गले की आवाज को

याद रखा जाएगा

तुम रात लिखो, हम चांद लिखेंगे

तुम जेल में डालो, हम दीवार फांद लिखेंगे

तुम FIR लिखो, हम तैयार लिखेंगे

तुम हमें कत्ल कर दो, हम बनके भूत लिखेंगे, तुम्हारी कत्ल के सारे सबूत लिखेंगे

तुम अदालतों से बैठकर चुटकुले लिखो

हम सड़कों, दीवारों पर इंसाफ लिखेंगे

बहरे भी सुन लें, इतनी जोर से बोलेंगे

अंधे भी पढ़ लें, इतना साफ लिखेंगे

तुम काला कमल लिखो

हम लाल गुलाब लिखेंगे

तुम जमीं पर जुल्म लिख दो

आसमां पर इंकलाब लिखा जाएगा

सब याद रखा जाएगा

सब कुछ याद रखा जाएगा

ताकि तुम्हारे नाम पर ताउम्र लानतें भेजी जा सके

ताकि तुम्हारे मुजस्समों पर कालिखें पोती जा सके

तुम्हारे नाम तुम्हारे मुजस्समों को आबाद रखा जाएगा

सब याद रखा जाएगा

सब कुछ याद रखा जाएगा

Sunday 5 April 2020

तू न मिट जाएगा ईरान के मिट जाने से नश्शा-ए-मय को तअल्लुक़ नहीं पैमाने से है अयाँ यूरिश-ए-तातार के अफ़्साने से पासबाँ मिल गए काबे को सनम-ख़ाने से

तू न मिट जाएगा ईरान के मिट जाने से 

नश्शा-ए-मय को तअल्लुक़ नहीं पैमाने से 

है अयाँ यूरिश-ए-तातार के अफ़्साने से 

पासबाँ मिल गए काबे को सनम-ख़ाने से


दिल से जो बात निकलती है असर रखती है 

पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है 

क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है 

ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है 

इश्क़ था फ़ित्नागर ओ सरकश ओ चालाक मिरा 

आसमाँ चीर गया नाला-ए-बेबाक मिरा 

पीर-ए-गर्दूं ने कहा सुन के कहीं है कोई 

बोले सय्यारे सर-ए-अर्श-ए-बरीं है कोई 

चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई 

कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई 

कुछ जो समझा मिरे शिकवे को तो रिज़वाँ समझा 

मुझ को जन्नत से निकाला हुआ इंसाँ समझा 

थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या 

अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या 

ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या 

आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या 

ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं 

शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं 

इस क़दर शोख़ कि अल्लाह से भी बरहम है 

था जो मस्जूद-ए-मलाइक ये वही आदम है 

आलिम-ए-कैफ़ है दाना-ए-रुमूज़-ए-कम है 

हाँ मगर इज्ज़ के असरार से ना-महरम है 

नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को 

बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को 

आई आवाज़ ग़म-अंगेज़ है अफ़्साना तिरा 

अश्क-ए-बेताब से लबरेज़ है पैमाना तिरा 

आसमाँ-गीर हुआ नारा-ए-मस्ताना तिरा 

किस क़दर शोख़-ज़बाँ है दिल-ए-दीवाना तिरा 

शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने 

हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने 

हम तो माइल-ब-करम हैं कोई साइल ही नहीं 

राह दिखलाएँ किसे रह-रव-ए-मंज़िल ही नहीं 

तर्बियत आम तो है जौहर-ए-क़ाबिल ही नहीं 

जिस से तामीर हो आदम की ये वो गिल ही नहीं 

कोई क़ाबिल हो तो हम शान-ए-कई देते हैं 

ढूँडने वालों को दुनिया भी नई देते हैं 

हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं 

उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं 

बुत-शिकन उठ गए बाक़ी जो रहे बुत-गर हैं 

था ब्राहीम पिदर और पिसर आज़र हैं 

बादा-आशाम नए बादा नया ख़ुम भी नए 

हरम-ए-काबा नया बुत भी नए तुम भी नए 

वो भी दिन थे कि यही माया-ए-रानाई था 

नाज़िश-ए-मौसम-ए-गुल लाला-ए-सहराई था 

जो मुसलमान था अल्लाह का सौदाई था 

कभी महबूब तुम्हारा यही हरजाई था 

किसी यकजाई से अब अहद-ए-ग़ुलामी कर लो 

मिल्लत-ए-अहमद-ए-मुर्सिल को मक़ामी कर लो 

किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है 

हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है 

तब-ए-आज़ाद पे क़ैद-ए-रमज़ाँ भारी है 

तुम्हीं कह दो यही आईन-ए-वफ़ादारी है 

क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं 

जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं 

जिन को आता नहीं दुनिया में कोई फ़न तुम हो 

नहीं जिस क़ौम को परवा-ए-नशेमन तुम हो 

बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो 

बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो 

हो निको नाम जो क़ब्रों की तिजारत कर के 

क्या न बेचोगे जो मिल जाएँ सनम पत्थर के 

सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया किस ने 

नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया किस ने 

मेरे काबे को जबीनों से बसाया किस ने 

मेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया किस ने 

थे तो आबा वो तुम्हारे ही मगर तुम क्या हो 

हाथ पर हाथ धरे मुंतज़िर-ए-फ़र्दा हो 

क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर 

शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर 

अदल है फ़ातिर-ए-हस्ती का अज़ल से दस्तूर 

मुस्लिम आईं हुआ काफ़िर तो मिले हूर ओ क़ुसूर 

तुम में हूरों का कोई चाहने वाला ही नहीं 

जल्वा-ए-तूर तो मौजूद है मूसा ही नहीं 

मंफ़अत एक है इस क़ौम का नुक़सान भी एक 

एक ही सब का नबी दीन भी ईमान भी एक 

हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक 

कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक 

फ़िरक़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं 

क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं 

कौन है तारिक-ए-आईन-ए-रसूल-ए-मुख़्तार 

मस्लहत वक़्त की है किस के अमल का मेआर 

किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार 

हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार 

क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं 

कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं 

जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब 

ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब 

नाम लेता है अगर कोई हमारा तो ग़रीब 

पर्दा रखता है अगर कोई तुम्हारा तो ग़रीब 

उमरा नश्शा-ए-दौलत में हैं ग़ाफ़िल हम से 

ज़िंदा है मिल्लत-ए-बैज़ा ग़ुरबा के दम से 

वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रही 

बर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही 

रह गई रस्म-ए-अज़ाँ रूह-ए-बिलाली न रही 

फ़ल्सफ़ा रह गया तल्क़ीन-ए-ग़ज़ाली न रही 

मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे 

यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे 

शोर है हो गए दुनिया से मुसलमाँ नाबूद 

हम ये कहते हैं कि थे भी कहीं मुस्लिम मौजूद 

वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद 

ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद 

यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो 

तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो 

दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाक 

अदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक 

शजर-ए-फ़ितरत-ए-मुस्लिम था हया से नमनाक 

था शुजाअत में वो इक हस्ती-ए-फ़ोक़-उल-इदराक 

ख़ुद-गुदाज़ी नम-ए-कैफ़ियत-ए-सहबा-यश बूद 

ख़ाली-अज़-ख़ेश शुदन सूरत-ए-मीना-यश बूद 

हर मुसलमाँ रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था 

उस के आईना-ए-हस्ती में अमल जौहर था 

जो भरोसा था उसे क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था 

है तुम्हें मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था 

बाप का इल्म न बेटे को अगर अज़बर हो 

फिर पिसर क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर क्यूँकर हो 

हर कोई मस्त-ए-मय-ए-ज़ौक़-ए-तन-आसानी है 

तुम मुसलमाँ हो ये अंदाज़-ए-मुसलमानी है 

हैदरी फ़क़्र है ने दौलत-ए-उस्मानी है 

तुम को अस्लाफ़ से क्या निस्बत-ए-रूहानी है 

वो ज़माने में मुअज़्ज़िज़ थे मुसलमाँ हो कर 

और तुम ख़्वार हुए तारिक-ए-क़ुरआँ हो कर 

तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम 

तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम 

चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम 

पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम 

तख़्त-ए-फ़ग़्फ़ूर भी उन का था सरीर-ए-कए भी 

यूँ ही बातें हैं कि तुम में वो हमियत है भी 

ख़ुद-कुशी शेवा तुम्हारा वो ग़यूर ओ ख़ुद्दार 

तुम उख़ुव्वत से गुरेज़ाँ वो उख़ुव्वत पे निसार 

तुम हो गुफ़्तार सरापा वो सरापा किरदार 

तुम तरसते हो कली को वो गुलिस्ताँ ब-कनार 

अब तलक याद है क़ौमों को हिकायत उन की 

नक़्श है सफ़्हा-ए-हस्ती पे सदाक़त उन की 

मिस्ल-ए-अंजुम उफ़ुक़-ए-क़ौम पे रौशन भी हुए 

बुत-ए-हिन्दी की मोहब्बत में बिरहमन भी हुए 

शौक़-ए-परवाज़ में महजूर-ए-नशेमन भी हुए 

बे-अमल थे ही जवाँ दीन से बद-ज़न भी हुए 

इन को तहज़ीब ने हर बंद से आज़ाद किया 

ला के काबे से सनम-ख़ाने में आबाद किया 

क़ैस ज़हमत-कश-ए-तन्हाई-ए-सहरा न रहे 

शहर की खाए हवा बादिया-पैमा न रहे 

वो तो दीवाना है बस्ती में रहे या न रहे 

ये ज़रूरी है हिजाब-ए-रुख़-ए-लैला न रहे 

गिला-ए-ज़ौर न हो शिकवा-ए-बेदाद न हो 

इश्क़ आज़ाद है क्यूँ हुस्न भी आज़ाद न हो 

अहद-ए-नौ बर्क़ है आतिश-ज़न-ए-हर-ख़िर्मन है 

ऐमन इस से कोई सहरा न कोई गुलशन है 

इस नई आग का अक़्वाम-ए-कुहन ईंधन है 

मिल्लत-ए-ख़त्म-ए-रसूल शोला-ब-पैराहन है 

आज भी हो जो ब्राहीम का ईमाँ पैदा 

आग कर सकती है अंदाज़-ए-गुलिस्ताँ पैदा 

देख कर रंग-ए-चमन हो न परेशाँ माली 

कौकब-ए-ग़ुंचा से शाख़ें हैं चमकने वाली 

ख़स ओ ख़ाशाक से होता है गुलिस्ताँ ख़ाली 

गुल-बर-अंदाज़ है ख़ून-ए-शोहदा की लाली 

रंग गर्दूं का ज़रा देख तो उन्नाबी है 

ये निकलते हुए सूरज की उफ़ुक़-ताबी है 

उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं 

और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं 

सैकड़ों नख़्ल हैं काहीदा भी बालीदा भी हैं 

सैकड़ों बत्न-ए-चमन में अभी पोशीदा भी हैं 

नख़्ल-ए-इस्लाम नमूना है बिरौ-मंदी का 

फल है ये सैकड़ों सदियों की चमन-बंदी का 

पाक है गर्द-ए-वतन से सर-ए-दामाँ तेरा 

तू वो यूसुफ़ है कि हर मिस्र है कनआँ तेरा 

क़ाफ़िला हो न सकेगा कभी वीराँ तेरा 

ग़ैर यक-बाँग-ए-दारा कुछ नहीं सामाँ तेरा 

नख़्ल-ए-शमा अस्ती ओ दर शोला दो-रेशा-ए-तू 

आक़िबत-सोज़ बवद साया-ए-अँदेशा-ए-तू 

तू न मिट जाएगा ईरान के मिट जाने से 

नश्शा-ए-मय को तअल्लुक़ नहीं पैमाने से 

है अयाँ यूरिश-ए-तातार के अफ़्साने से 

पासबाँ मिल गए काबे को सनम-ख़ाने से 

कश्ती-ए-हक़ का ज़माने में सहारा तू है 

अस्र-ए-नौ-रात है धुँदला सा सितारा तू है 

है जो हंगामा बपा यूरिश-ए-बुलग़ारी का 

ग़ाफ़िलों के लिए पैग़ाम है बेदारी का 

तू समझता है ये सामाँ है दिल-आज़ारी का 

इम्तिहाँ है तिरे ईसार का ख़ुद्दारी का 

क्यूँ हिरासाँ है सहिल-ए-फ़रस-ए-आदा से 

नूर-ए-हक़ बुझ न सकेगा नफ़स-ए-आदा से 

चश्म-ए-अक़्वाम से मख़्फ़ी है हक़ीक़त तेरी 

है अभी महफ़िल-ए-हस्ती को ज़रूरत तेरी 

ज़िंदा रखती है ज़माने को हरारत तेरी 

कौकब-ए-क़िस्मत-ए-इम्काँ है ख़िलाफ़त तेरी 

वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी बाक़ी है 

नूर-ए-तौहीद का इत्माम अभी बाक़ी है 

मिस्ल-ए-बू क़ैद है ग़ुंचे में परेशाँ हो जा 

रख़्त-बर-दोश हवा-ए-चमनिस्ताँ हो जा 

है तुनक-माया तू ज़र्रे से बयाबाँ हो जा 

नग़्मा-ए-मौज है हंगामा-ए-तूफ़ाँ हो जा 

क़ुव्वत-ए-इश्क़ से हर पस्त को बाला कर दे 

दहर में इस्म-ए-मोहम्मद से उजाला कर दे 

हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो 

चमन-ए-दह्र में कलियों का तबस्सुम भी न हो 

ये न साक़ी हो तो फिर मय भी न हो ख़ुम भी न हो 

बज़्म-ए-तौहीद भी दुनिया में न हो तुम भी न हो 

ख़ेमा-ए-अफ़्लाक का इस्तादा इसी नाम से है 

नब्ज़-ए-हस्ती तपिश-आमादा इसी नाम से है 

दश्त में दामन-ए-कोहसार में मैदान में है 

बहर में मौज की आग़ोश में तूफ़ान में है 

चीन के शहर मराक़श के बयाबान में है 

और पोशीदा मुसलमान के ईमान में है 

चश्म-ए-अक़्वाम ये नज़्ज़ारा अबद तक देखे 

रिफ़अत-ए-शान-ए-रफ़ाना-लका-ज़िक्र देखे 

मर्दुम-ए-चश्म-ए-ज़मीं यानी वो काली दुनिया 

वो तुम्हारे शोहदा पालने वाली दुनिया 

गर्मी-ए-मेहर की परवरदा हिलाली दुनिया 

इश्क़ वाले जिसे कहते हैं बिलाली दुनिया 

तपिश-अंदोज़ है इस नाम से पारे की तरह 

ग़ोता-ज़न नूर में है आँख के तारे की तरह 

अक़्ल है तेरी सिपर इश्क़ है शमशीर तिरी 

मिरे दरवेश ख़िलाफ़त है जहाँगीर तिरी 

मा-सिवा-अल्लाह के लिए आग है तकबीर तिरी 

तू मुसलमाँ हो तो तक़दीर है तदबीर तिरी 

की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं 

ये जहाँ चीज़ है क्या लौह-ओ-क़लम तेरे हैं

Sunday 22 March 2020

रीडर के वेतन की रिकवरी पर रोक

रीडर के वेतन की रिकवरी पर रोक


मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने अंतरिम आदेश के जरिए रीडर के वेतन की रिकवरी पर रोक लगा दी। साथ ही राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने के निर्देश दे दिए।

याचिकाकर्ता भोपाल निवासी डॉ.जुबेर अहमद अंसारी की ओर से अधिवक्ता विजय राघव सिंह, मनोज चतुर्वेदी व अजय नंदा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता यूनानी चिकित्सा महाविद्यालय में रीडर के पद पर कार्यरत है। उसके वेतन से 30 हजार रुपए मासिक के हिसाब से कुल 6 लाख रुपए की कटौती का नोटिस थमा दिया गया है। चूंकि कटौती का आदेश मनमाना है और अतार्किक है, अतः विरोध किया गया। जब कोई असर नहीं हुआ तो हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।

https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/jabalpur-jabalpurnews-in-hindi-5430666

Monday 9 March 2020

होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह



होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

नाम नबी की रतन चढी, बूँद पडी इल्लल्लाह
रंग-रंगीली उही खिलावे, जो सखी होवे फ़ना-फी-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

अलस्तु बिरब्बिकुम पीतम बोले, सभ सखियाँ ने घूंघट खोले
क़ालू बला ही यूँ कर बोले, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

नह्नो-अकरब की बंसी बजायी, मन अरफ़ा नफ्सहू की कूक सुनायी
फसुम-वजहिल्लाह की धूम मचाई, विच दरबार रसूल-अल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

हाथ जोड़ कर पाऊँ पडूँगी आजिज़ होंकर बिनी करुँगी
झगडा कर भर झोली लूंगी, नूर मोहम्मद सल्लल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

फ़ज अज्कुरनी होरी बताऊँ , वाश्करुली पीया को रिझाऊं
ऐसे पिया के मैं बल जाऊं, कैसा पिया सुब्हान-अल्लाह 
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

सिबगतुल्लाह की भर पिचकारी, अल्लाहुस-समद पिया मुंह पर मारी
नूर नबी [स] डा हक से जारी, नूर मोहम्मद सल्लल्लाह
बुला शाह दी धूम मची है, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह

Monday 3 February 2020

अवमानना मामले में प्रमुख सचिव को नोटिस

अवमानना मामले में प्रमुख सचिव को नोटिस


हाई कोर्ट के जस्टिस फहीम अनवर की एकलपीठ ने अवमानना मामले में राज्य सरकार की नाफरमानी को आड़े हाथों लेते हुए उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव नीजर मंडलोई तथा उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त राघवेंद्र कुमार सिंह को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ महेंद्र सिंह रघुवंशी व शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय (नवीन) पुराना मालवीय छात्रावास भोपाल के प्राचार्य को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
भोपाल निवासी मीनाक्षी शर्मा ने ग्रंथपाल के पद पर पदोन्नति एवं सेवानिवृत्ति के लाभ दिए जाने को लेकर पूर्व में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसको लेकर हाई कोर्ट की एकलपीठ ने उन्हें पदोन्नति का लाभ देने राज्य शासन को आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विजय राघव सिंह, मनोज चतुर्वेदी, अजय नंदा ने कोर्ट को बताया कि इस आदेश पर राज्य शासन का कई बार ध्यान आकृष्ट कराया गया लेकिन ठोस कार्रवाई नदारद रही। इसी को लेकर अवमानना याचिका दायर की गई है। निर्देश की ना फरमानी करने वाले सभी जिम्मेदारों के खिलाफ कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी जवाब मांगा है।

Friday 17 January 2020

Firaq Gorakhpuri


उफ़ बेकसी-ए-हिज्र में मजबूरी-ए-नुख्त
हम तुझको पुकारे तो पुकारे कैसे
[ बेकसी-ए-हिज्र = loneliness of seperation, मजबूरी-ए-नुख्त = helplessness of speech]

uff bekasi-e-hizr mein majboori-e-nukth (speech)
hum tujhko pukaare tou pukaare kaise

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जिसे डस  लिया हो ज़माने नें, कोई ज़िन्दगी है वो ज़िन्दगी
ये सवाद शाम अज़लनुमा, ये ज़िया-ए -सुभ कफ़न कफ़न
[ सवाद शाम = dark night, अज़लनुमा = from the begining, endless; ज़िया-ए -सुभ = light of the dawn  ]

तन्हाई में किसे बुलाये ए दोस्त, तुम दूर हो किसके पास जाए ए दोस्त
इस दौलत-ए-वक़्त से तो  दम घुटता है, ये नकद-ए -शब् कहाँ भुनाए ए दोस्त

सर-ब-सर कोई दास्ताँ, है अजीब आलम-ए-अंजुमन
ये निगाह-ए-नाज़ ज़बां-ज़बां ये सुकूत -ए-नाज़ सुखन सुखन
[ सर-ब-सर = wholly/full, आलम-ए-अंजुमन = congregation of world, निगाह-ए-नाज़  = coquetry of eyes,  सुकूत -ए-नाज़ = coquetry of  silence]

jis das lia ho zamane ne koi zindagi hai wo zindagi
ye sawad shaam azalnumaa, ye ziaa-e-subh kafan kafan

tanhai mein kise bulaye aye dost, tum door ho kiske pass jaaye aye dost
iss dault-e-waqt se dam ghuta hai, ye naqad-e-shab kahan bhunaaye aye dost

sar-ba-sar koi daastan, hai azeeb aalam-e-anjuman
ye nigaah-e-naaz zaban zabaan, ye sukuut-e-naaz sukhan sukhan
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ए मानी-ए-कायनात मुझ में आ जा,
ए राज़-ए-सिफ़ात-ए-ज़ात मुझ में आ जा
सोता संसार, झिलमिलाते तारे
अब भीग चली है रात मुझ में आ जा
[ मानी-ए-कायनात = reality of world, राज़-ए-सिफ़ात-ए-ज़ात = secret of attributes of creed ]

aye mani-e-kayanaat mujhe mein aa jaa
aye raaz-e-siffat-o-zaat mujh mein aa jaa
sota sansaar, jhilmiliaate taare,
ab bheeg chali hai raat mujh mein aa jaa

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शाम भी थी धुंआ धुंआ , हुश्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गयी

shaam bhee thee dhuan dhuan, husn bhee tha udaas udaas
dil koi kai kahaaniyan yaad se aa ke rah gai

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अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं
यूँ ही कभू कुछ बोले हैं
पहले फिराक को देखा होता
अब तो बहुत कम बोले है

ab aksar chup chup se rahe hain
yun hee kabhu kuch bole hain
pehle firaak ko dekha hota
ab tou bahut kam bole hain

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हर साज़ से होती नहीं ये धुन पैदा
होता है बड़े जतन  से ये गुण पैदा
विजां-ए -निशात-ओ-गम से सदियों तुलकर
होता है हयात में तवाजुन पैदा
[ विजां-ए -निशात-ओ-गम  = weighing balance of pleasure and pain, तवाजुन  =balance]

har saaz se hoti nahin hai yeh dhun paida
hota hai bade jatan se ye gun paida
vizaan-e-nisaat-o- gam se sadiyoin tulkar
hota hai hayat mein tawaazun paida

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किसी का कौन हुआ  यूँ तो उम्र भर, मगर फिर भी
ये हुश्न-ओ-इश्क तो धोखा है सब , मगर फिर भी 
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

kisi ka kaun hua umr bhar yun tou hai phir bhee
ye husn aur ishq tou dokha hai magar phir bhee
hazaar baar zamana idhar se guzraa hai
nai nai see hai teri rahguszar phit bhee
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वो आलम होता है मुझ पैर जब फ़िक्र-ए-ग़ज़ल मैं करता हूँ
खुद अपने ख्यालों को हमदम मैं हाथ लगाते डरता हूँ

जब साज़-ए-ग़ज़ल को छूता हूँ रातें लौ देने लगती हैं
ज़ुल्मात के सीने में मैं रोज़ चरागाँ  करता हूँ
[ज़ुल्मात = darkness, a dark place where water of immortality is said to be ]

ये मेरी नवा-ए-नीमशबी अश्क-ए-अंजुम में नहाई हुई
उड़ जाती है नींदें सदियों की क्या जाने क्या मैं करता हूँ
[ नवा-ए-नीमशबी = song of deep night, अश्क-ए-अंजुम = tears of stars]

दिल जिनके फलक से अटके हैं, धरती की वो अज़मत क्या जाने
मैं जिसके कदम पर कंगूरा-ए-अफ़लाक  को भी ख़म करता हूँ
[ फलक = sky, अज़मत  = dignity/greatness, कंगूरा-ए-अफ़लाक = scallop shell (sankh) of heaven),ख़म = bend/turn ]



wo aalam hota hai mujh per jab fikr-e-ghazal main karta hoon
khud apne khayalon ko humdam main haath lagaate dartaa hoon
jab saaz-e-ghazal ko chutta hoon raatein lau dene lagti hain
zulmaat ke seen mein main roz charaaga karta hoon
ye meri nawaiye neem shabi ashq -e- anjum mein nahlayee hui
udd jaati hai neende sadiyon kee kya jaane kya main karta hoon
dil jinke falak se atake hain, dharti kee wo azamat kya jaane
main jiske kadam per kangoora-e-aflaak ko bhee kham karta hoon

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तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो, तुम को देखे की तुम से बात करे
[मुखातिब = being addressed/spoken ]

tum mukhaatib bhee ho aur kareeb bhee ho tum ko dekhe ki tum se  baat kare
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ये न पूछ की कितना जिया हूँ मैं
ये न पूछ की कैसे जिया हूँ मैं
की अबद  की आँख भी लग गयी
मेरे ग़म की शाम-ए-दराज़ में
[शाम-ए-दराज़ = long evening]

ye na pooch kee kitna jia hoon main
ye na pooch kee kaise jia hoon main
kee abad kee aankh bhee lag gayi
mere gam ke shaam-e-daraz mein

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सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शब्-ए-फुरकत बहुत घबरा रहा हूँ
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज भी सुलझा रहा हूँ

sitaroon se ulajhta jaa raha hoon
shab-e-furkat bahut ghbaraa raha hoon
jo uljhi thee kabhi aadam ke haathon
wo gutthi aaj bhee suljhaa raha hoon

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बिगड़ी को सवारे तो सवारे न बने
दागों को उभारे तो उभारे न बने

bigdi ko sawaree tou sawaare na bane
daagon ko ubhaare tou ubhaare na bane
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तेरी कदामत में भी बर्मायी की
असरार-ए-नुमू से है सनासाई की
वो रोज़ है वादियों में फ़िक्र-ओ -फन के 
लेता है दवाम दिल में अंगड़ाई सी
[ कदामत  = antiquity/priority/seniority, असरार-ए-नुमू = secreats of vegetation/growth, सनासाई=acquaintance, दवाम = always/perpetually ]

teri kadaamat mein bhee barmayee kee
asraare-numoo se hai sanayee see
wo roz hai waadiyon mein fikr-o-fan kee
leta hai dawaam dil mein angdayee see

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मैं ये नग्मे गाते गाते कितनी दूर निकल आया हूँ
कायनात की हर सरहद नज़रों से छुपती जाती है
अलविदा ए जनम साथियों अल फ़िराक ए हमसफरों
एक  अनसुनी  पुकार दूर से कहीं मुझ को बुलाती है
अब तुम से रुखसत होता हूँ, आओ संभालो नगमा-ए-ग़ज़ल
नए तराने छेड़ो मेरे नाघ्मों को नींद आती है

main ye nagme gaate gaate kitni door nikal aaya
kayanaat ke har sarhad nazron se chupti jaati hai
alwida aye janam saathiyo al firaak aye humsafron
ek unsuni pukaar door se kahin mujh ko bulaati hai
ab tum se rukhsat hota hoon aao sambhalo naghma-e-ghazal
naye taraane chedo mere nagmon ko neend aati hai
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